अष्टसखी करतीं सदा सेवा परम अनन्य,
श्रीराधामाधव युगल की कर निज जीवन धन्य।
जिनके चरण सरोज में बारम्बार प्रणाम,
करुणा कर दें युगल पद-रज-रति अभिराम।। (पद-रत्नाकर)
श्रीराधाजी की पांच प्रकार की सखियां मानी जाती हैं–सखी, नित्यसखी, प्राणसखी, प्रियसखी और परमप्रेष्ठसखी (सबसे अधिक प्रिय सखी)। ललिता, विशाखा, चित्रा, इन्दुलेखा, चम्पकलता, रंगदेवी, तुंगविद्या और सुदेवी–ये श्रीराधाजी की परमप्रेष्ठसखी हैं। ये आठों सखियां ही ‘अष्टसखी’ के नाम से जानी जाती हैं। श्रीराधामाधव की लीला में इनकी आयु चौदह वर्ष की है। इनकी देह श्रीराधा की तरह नित्य सुन्दर, नित्य मधुर व सच्चिदानन्दमय हैं। श्रीराधाकृष्ण की लीला में ये आठ सखियां सदैव विद्यमान रहती हैं। ये सखियां राधामाधव की सेवा में लगे रहकर ही परमानन्द का अनुभव करती हैं।
जिस प्रकार मानवशरीर में हृदय से जुड़ी धमनियां शुद्ध रक्त लेकर सम्पूर्ण शरीर में फैलाती हैं, उसी प्रकार ये अष्टसखियां श्रीराधा के हृदयसरोवर से प्रेमरस लेकर सर्वत्र प्रेम का विस्तार करती हैं।श्रीराधामाधव को सुख पहुंचाना ही इनके जीवन का आधार है।
निकुंजलीला की संयोजिका हैं अष्टसखियां
निकुंजलीला में श्रीराधामाधव के मधुरमिलन का आयोजन करने वाली अष्टसखियां ही हैं। इनके वाद्यों में वही गीत बजता है, जो युगलस्वरूप श्रीराधाकृष्ण के हृदयतन्त्र में ध्वनित होता है और श्रीराधामाधव के हृदय में गूंजने वाले राग के स्वर ही इनके वाद्यों से निकलते हैं अर्थात् निकुंजलीला में ये अष्टसखियां श्रीराधामाधव की इच्छाशक्ति हैं।
‘अष्टसखियों को श्रीराधा की अपने प्रिय श्रीकृष्ण की सेवा के लिए प्रकट होने वाली अगणित इच्छाओं का स्वरूप भी कहा जा सकता है।’
श्रीराधा की अष्टसखियों का परिचय
श्रीललिता
ललिता सखी श्रीराधा की सबसे प्रिय सखी हैं। ललिता सखी के श्रीअंगों की कांति गोरोचन (पीतवर्ण का सुगन्धित द्रव्य) के समान है। वे मोरपंख के समान चित्रित साड़ी पहनती हैं। वे सभी सखियों की गुरुरूपा हैं। श्रीललिता इन्द्रजाल में निपुण हैं। फूलों की कला में कुशल वे श्रीराधामाधव की कुंजलीला के लिए फूलों के सुन्दर चंदोबे तैयार करती हैं। ये श्रीराधा को ताम्बूल (पान का बीड़ा) देने की सेवा करती हैं। इस सेवा से वे अत्यन्त ललित (सुन्दर) हो गयीं हैं।
इन्द्रजाल-निपुणा, नित करती
परम स्वादु ताम्बूल प्रदान।
कुसुम-कला-कुशला, रचती कल
कुसुम-निकेतन कुसुम-वितान।। (महाभाव-कल्लोलिनी)
विशाखा
विशाखा सखी के अंगों की कान्ति सौदामिनी (आकाशीय बिजली) की तरह है। उनकी साड़ी ऐसे झिलमिल करती है मानो आकाश से समस्त तारागण आकर उसमें सिमट गए हों। वे श्रीराधा को कर्पूर-चन्दनयुक्त सुगन्धित अंगराग लगाती हैं व उनके श्रीअंग में सुन्दर पत्रावली (बेल-बूटे) बनाती हैं।
कर्पूरादि सुगन्ध-द्रव्य युत
लेपन करती सुन्दर अंग।
बूटे-बेल बनाती, रचती
चित्र विविध रुचि अंग-प्रत्यंग।। (महाभाव-कल्लोलिनी)
चित्रा
चित्रासखी के श्रीअंगों की कान्ति केशर के समान हैं। ये काचवर्ण की सुन्दर साड़ी धारण करती हैं। हृदय में सुन्दर भावों को लिए ये करुणा से भरी हैं। ये श्रीराधा का वस्त्र-आभूषण से सुन्दर श्रृंगार करने की सेवा करती हैं। चित्रा सखी अनेक प्रकार की सांकेतिक भाषाओं को जानती हैं।
विविध विचित्र वसन-आभूषण
से करती सुन्दर श्रृंगार।
करती सांकेतिक अनेक
देशों की भाषा का व्यवहार।। (महाभाव-कल्लोलिनी)
इन्दुलेखा
श्रीराधा की इन्दुलेखा सखी के शरीर की शोभा हरिताल (पीले रंग) जैसी है। ये दाड़िमपुष्पों के (लाल) रंग की सुन्दर साड़ी धारण करती हैं। इनके मुख पर प्रसन्नता की शोभा चन्द्रमा से भी बढ़कर है। ये अपने नृत्य द्वारा श्रीराधामाधव को प्रसन्न करती हैं। ये व्रज की सबसे प्रसिद्ध गायन-विद्या में निपुण गोपी हैं।
करती नृत्य विचित्र भंगिमा
संयुत नित नूतन अभिराम।
गायन-विद्या-निपुणा, व्रज की
ख्यात गोपसुन्दरी ललाम।। (महाभाव-कल्लोलिनी)
चम्पकलता
श्रीराधा की चम्पकलता सखी के अंगों की आभा चम्पकपुष्प जैसी (श्वेत) है। ये नीलवर्ण की साड़ी पहनती हैं। ये अपने करकमलों से रत्ननिर्मित चँवर डुलाकर निरन्तर श्रीराधा की सेवा करती हैं। द्यूतविद्या की पंडित हैं और तरह-तरह से सुन्दर श्रृंगार करने में निपुण हैं।
चाव भरे नित चँवर डुलाती
अविरत निज कर-कमल उदार।
द्यूत-पण्डिता, विविध कलाओं
से करती सुन्दर श्रृंगार।। (महाभाव-कल्लोलिनी)
रंगदेवी
इनके अंगों की कान्ति पद्मपराग (कमल-केसर) के समान है और ये जवाकुसुम रंग की साड़ी धारण करती हैं। ये नित्य श्रीराधा के हाथों और चरणों में अत्यन्त सुन्दर जावक (महावर) लगाती हैं। व्रतों व त्यौहारों में आस्था रखने वाली अत्यन्त सुन्दर रंगदेवी सखी सभी कलाओं में निपुण हैं।
नित्य लगाती रुचि कर-चरणों
में यावक अतिशय अभिराम।
आस्था अति त्यौहार-व्रतों में
कला-कुशल शुचि शोभाधाम।। (महाभाव-कल्लोलिनी)
तुंगविद्या
श्रीराधा की सखी तुंगविद्या की कान्ति कर्पूर-चंदन मिश्रित कुंकुम के समान है। वे पीले रंग की सुन्दर साड़ी धारण करती हैं और अपनी बुद्धिमत्ता के लिए जानी जाती हैं। इन्हें नीति-नाटक आदि सभी विद्याओं का ज्ञाता बताया गया है। तुंगविद्या सखी का कार्य श्रीराधाकृष्ण को गीत, वाद्य आदि से प्रसन्न करना है।
गीत-वाद्य से सेवा करती
अतिशय सरस सदा अविराम।
नीति-नाट्य-गान्धर्व-शास्त्र
निपुणा रस-आचार्या अभिराम।। (महाभाव-कल्लोलिनी)
सुदेवी
सुदेवी सखी की अंगकान्ति तपाये हुए सोने के समान है। वे मूंगे के रंग की साड़ी धारण करती हैं और श्रीराधा की सुन्दर वेणी बनाने की कला में निपुण हैं और श्रीराधा को जल पिलाने की सेवा करती हैं।
जल निर्मल पावन सुरभित से
करती जो सेवा अभिराम।
ललित लाड़िली की जो करती
बेणी-रचना परम ललाम।। (महाभाव-कल्लोलिनी)
भगवान श्रीराधामाधव के प्रेमधाम में ये अष्टसखियां युगलस्वरूप की सेवा में नित्य नियुक्त रहती हैं।
अष्टसखियों के गांव
श्रीराधाजी की आठ खास सखियों के नाम से बरसाना क्षेत्र में आठ गांव बसे हैं–
ललिता सखी–ऊंचा गांव, अटोर पर्वत।
विशाखा सखी–आजनौंक गांव (कहा जाता है कि श्रीकृष्ण की वंशीध्वनि सुनकर आतुर हुई श्रीराधा यहां एक ही नेत्र में अंजन (काजल) लगाकर चली आईं। तब श्रीकृष्ण ने एक काली शिला पर अंगूठी रगड़कर किशोरीजी की दूसरी आंख में स्वयं अंजन लगाया था। इसी से इसका नाम आजनौंक पड़ गया।)
चित्रलेखा सखी–चिकसोली गांव, ब्रह्मांचल पर्वत।
तुंगविद्या सखी–कमई गांव।
रंगदेवी सखी–डभारो गांव, रत्नागिरी पर्वत (डभारो का अर्थ है ‘डबडबाई आंखें’ या ‘अश्रुपूरित नेत्र’। कहते हैं अत्यधिक प्रेम के कारण श्रीराधा के विछोह में यहां भगवान श्रीकृष्ण के नेत्र भर आए थे।)
इन्दुलेखा सखी–राकौली गांव।
चंपकलता सखी–करहला गांव, अष्टकूट पर्वत।
सुदेवी सखी–सुनहरा गांव, अरावली पर्वत।
jai ho