भगवान श्रीकृष्ण का व्रजप्रेम
कई दिन बीत गए पर मथुराधीश श्रीकृष्ण ने भोजन नहीं किया। संध्या होते ही महल की अटारी (झरोखों) पर बैठकर गोकुल का स्मरण करते हैं। वृन्दावन की ओर टकटकी लगाकर प्रेमाश्रु बहा रहे हैं। कन्हैया के प्रिय सखा उद्धवजी से रहा नहीं गया। उन्होंने कन्हैया से कहा--’मैंने आपको मथुरा में कभी आनन्दित होते नहीं देखा। आप दु:खी व उदास रहते हैं। आपका यह दु:ख मुझसे देखा नहीं जाता।’
श्रीकृष्ण को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए गोपिकाओं का कात्यायनी...
कात्यायनीदेवी श्रीकृष्ण मन्त्राधिष्ठात्री देवी हैं। गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए केवल हविष्यान्न खाकर एक मास तक मां की आराधना की। श्रीकृष्ण पतिरूप में मिलें इसका अर्थ है मुझे परमात्मा से मिलना है, परमात्मा के साथ एकाकार होना है। मां कात्यायनी ब्रह्मविद्या का स्वरूप हैं जो परमात्मा से मिलन कराती हैं। गोपियां मूंगे की माला से उनके मन्त्र का एक सहस्त्र जप करतीं।
श्रीगोविन्द दामोदर स्तोत्र एवं भक्त बिल्वमंगल
भगवान का नाम कितना पावन है, उसमें कितनी शान्ति, कैसी शक्ति और कितनी कामप्रदता है, यह कोई नहीं बतला सकता। अथाह की थाह कौन ले सकता है? जिसके माहात्म्य का आरम्भ बुद्धि से परे पहुंचने पर होता है, उसका वाणी से कैसे वर्णन हो सकता है?
श्रीकृष्ण द्वारा गिरिगोवर्धन-पूजन महोत्सव
देवराज इन्द्र परब्रह्म परमात्मा को ‘मनुष्य’, उनके चिन्मय तत्वों को ‘जड’ और भगवान के लीला सहचरों को ‘सामान्य’ मान बैठे थे। इन्द्र की भोगवादी संस्कृति ने ग्वालों को भीरु बना दिया, तब श्रीकृष्ण ने उनमें आत्मचेतना का दिव्यमन्त्र फूंक कर उन्हें स्वयं पर भरोसा करने वाला आत्मविश्वासी बनाया। गोपालक व लोक संस्कृति का पुनर्जागरण कर गिरिराज गोवर्धन की पूजा का विधान बताया।
कार्तिकमास में भगवान विष्णु और वेदों का जल में निवास
कार्तिक-स्नान से सत्यभामाजी को श्रीकृष्ण की पति रूप में प्राप्ति, कार्तिकमास में भगवान विष्णु व वेदों का जल में निवास, व्रज में कार्तिक-स्नान-व्रत
जीव और ब्रह्म का मिलन : महारास
ब्रह्माजी ने मान लिया कि यह स्त्री-पुरुष का मिलन नहीं है; यह तो अंश और अंशी का मिलन है। श्रीकृष्ण गोपीरूप हो गए हैं और गोपियां श्रीकृष्णमय हो गयीं। कृष्णरूप (ब्रह्मरूप) हो जाने के बाद गोपी (जीव) का अस्तित्व कहां रहा? ब्रह्म से जीव का मिलन हुआ। जैसे नन्हा-सा शिशु निर्विकार-भाव से अपनी परछाई के साथ खेलता है, वैसे ही रमारमण भगवान श्रीकृष्ण ने व्रजसुन्दरियों के साथ विहार किया। न कोई जड शरीर था और न प्राकृत अंग-संग। भगवान श्रीकृष्ण की इस चिदानन्द रसमयी दिव्य क्रीडा का नाम ही रास है।
कान्हा मोरि गागर फोरि गयौ रे
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोपी की गोरस से भरी मटकी फोड़ने की लीला और उसका भाव वर्णन
भाव, भक्ति एवं भजनपूरित एक वर्ष
जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है,
उसी का सब है जल्वा, जो जहाँ में आशकारा है।
गुनह बख्शो, रसाई दो, बसा लो अपने कदमों...
श्रीबालकृष्ण की मानसी सेवा-पूजा विधि
ईश्वर के लिए हमारे मन में जो उत्तम भाव उठते लगते हैं वही पुष्प हैं। इन्हीं सब भावों को बार-बार भगवान के साथ जोड़ना, इसी को पुष्पांजलि कहते हैं। यही सब करते-करते भगवान में समा जाना--मानो आनन्द के समुद्र में डूब रहे हों। यही डूबना-उतरना भगवान की मानसी-सेवा-पूजा है।
श्रीराधा का रूप-माधुर्य
‘मेरी उन श्रीराधा के प्रेमराज्य में मलिन काम-भोग की लेशमात्र कल्पना भी नहीं है। रागरहित श्रृंगार है, मोहरहित पवित्र प्रेम है, निज-सुख-इच्छा से रहित ममता है, स्वादरहित सब खान-पान है, अभिमान से रहित अति मान है। मेरी वे साध्यस्वरूपा श्रीराधा नित्य तृप्त हैं और श्रीमाधव की पवित्रतम परमाराध्य हैं।’