प्रेम की आंख और द्वेष की आंख
जितना ही मनुष्य दूसरों से प्रेम करेगा, उनसे जुड़ता जाएगा; उतना ही वह सुखी रहेगा । जितना ही दूसरों को द्वेष-दृष्टि से देखोगे, उनसे कटते जाओगे उतने ही दु:खी होओगे । जुड़ना ही आनन्द है और कटना ही दु:ख है
मित्रता या प्रेम की आंख से पृथ्वी स्वर्ग बनती है और द्वेष की आंख से नरक का जन्म होता है ।
योगमाया किसे कहते हैं ?
भगवान की अचिन्त्य शक्ति का नाम ‘योगमाया’ या ‘महामाया’ है । ‘अचिन्त्य’ का अर्थ होता है अचिंतनीय (unthinkable) । भगवान की लीला के लिए पहले से ही मंच, पात्र आदि तैयार कर देना, संसारी जीवों के सामने भगवान की भगवत्ता को छुपा कर रखना आदि काम योगमाया ही करती हैं ।
श्रीराधा की जन्म-आरती, बधाई और पलना के पद
राजा वृषभानु ने श्रीराधा के झूलने के लिए चंदन की लकड़ी का पालना बनवाया जिसमें सोने-चांदी के पत्र और जवाहरात लगे थे। पालने में श्रीजी के झूलने के स्थान को नीलमणि से बने मोरों की बेलों से सजाया गया था ।
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्
गुरु माता ने श्रीकृष्ण को आशीर्वाद दिया—‘तुम्हारे मुख में सरस्वती का वास होगा, चरणों में लक्ष्मी का वास होगा, तुम्हारी कीर्ति सारे संसार में फैली रहेगी, तुम कभी भी ज्ञान को नहीं भूलोगे ।’
ज्ञान प्राप्त करना इतना कठिन नहीं है जितना कि उसको स्थिर रखना । सद्गुरु की कृपा से ही प्राप्त ज्ञानस्थिर रहता है ।
साग विदुर घर खायो
विदुरजी बड़ी सावधानी से भगवान को केले का गूदा खिलाने लगे तो भगवान ने कहा—‘आपने केले तो मुझे बड़े प्यार से खिलाए, पर न मालूम क्यों इनमें छिलके जैसा स्वाद नहीं आया ।’ इसी से कहा गया है—‘सबसे ऊंची प्रेम सगाई ।’
मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण प्रेम, आनन्द और माधुर्य के अवतार माने जाते हैं । अपनी व्रज लीला में उन्होने सबको इन्हीं का ही वितरण किया । अपनी माधुर्य शक्ति से वे जीव को अपनी ओर आकर्षित कर कहते हैं--’तुम यहां आओ ! मैं ही सच्चा आनन्द हूँ । मैं तुमको आत्मस्वरूप का दान करने के लिए बुलाता हूँ ।’
भगवान का रूप इतना सुन्दर क्यों होता है ?
ऐसा माना जाता है कि सभी दिव्य गुणों और भूषणों—मुकुट, किरीट, कुण्डल आदि ने युग-युगान्तर, कल्प-कल्पान्तर तक तपस्या कर भगवान को प्रसन्न किया । भगवान बोले—‘वर मांगो ।’ गुणों और आभूषणों ने कहा—‘प्रभो ! आप हमें अंगीकार करें और हमें धारण कर लें । यदि आप हमें स्वीकार नहीं करेंगे तो हम ‘गुण’ कहने लायक कहां रह जाएंगे ? आभूषणों ने कहा—‘यदि आप हमें नहीं अपनाएगें तो हम ‘भूषण’ नहीं ‘दूषण’ ही बने रहेंगे ।’ भगवान ने उन सबको अपने विग्रह में धारण कर लिया ।
विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ की महिमा
एक बार युधिष्ठिर ने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण ध्यान में बैठे हैं । ध्यान पूर्ण होने पर युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा—‘प्रभु ! सब लोग आपका ध्यान करते हैं, आप किसका ध्यान कर रहे थे ?’ भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—‘मेरा भक्त गंगा तट पर शरशय्या पर पड़ा मेरा ध्यान कर रहा है और मैं अपने उस प्रिय भक्त का ध्यान कर रहा हूँ ।’
तुलसी दल की महिमा
नारदजी ने कहा—‘एक समाधान है—श्रीकृष्ण के बराबर अन्य किसी वस्तु का दान कर दिया जाए ।’
फिर क्या था, सभी रानियों ने पल भर में ही श्रीकृष्ण को तराजू के एक पलड़े पर बिठा दिया और दूसरे पलड़े पर अनन्त रत्न, स्वर्ण-आभूषण आदि बहुमूल्य पदार्थ रख दिए । किन्तु भगवान को कौन किस वस्तु से तौल सकता है ?
वैराग्य के अवतार : भक्त राँका और बाँका
उस दिन भगवान ने भक्तों की वैराग्य लीला से प्रसन्न होकर राँका-बाँका के लिए जंगल में सारी सूखी लकड़ियां एकत्र कर गट्ठर बांध कर रख दीं । पति-पत्नी ने देखा कि आज तो जंगल में कहीं भी लकड़ियां दिखाई नहीं देती हैं । लकड़ी के गट्ठरों को उन्होंने किसी दूसरे का समझा । दूसरे की वस्तु की ओर आंख उठाना भी पाप है—यह सोच कर दोनों खाली हाथ घर लौट आए ।