गजेन्द्न-मोक्ष के लिए भगवान का श्रीहरि अवतार
तृतीय मन्वन्तर में भगवान का ‘श्रीहरि’ अवतार हुआ । भगवान ने हरिमेधस ऋषि की पत्नी हरिणी में अवतार धारण किया और ‘श्रीहरि’ कहलाये । भगवान का यह अवतार अपने आर्त भक्त गजेन्द्र की ग्राह से रक्षा के लिए हुआ था । भगवान अपने पुकारने वालों की कैसे रक्षा करते हैं और उनके रक्षण में उनकी कैसी तत्परता रहती है—श्रीमद्भागवत का ‘गजेन्द्र-मोक्ष’ का प्रसंग यही बताता है ।
करुणामयी, कृष्णमयी, त्यागमयी श्रीराधा
श्रीकृष्ण की आत्मा श्रीराधा का चरित्र अथाह समुद्र के समान है जिसकी गहराई को नापना असंभव है; अर्थात् श्रीराधा-चरित्र के विभिन्न पहलुओं का पूर्णत: वर्णन करना असम्भव है । फिर भी पाठकों की सुविधा के लिए उस समुद्र में डुबकी लगा कर कुछ मोती ढूंढ़ ही लेते हैं ।
भगवान श्रीकृष्ण की योगी लीला
भक्तों को दिए वरदानों और उनके मनोरथों को पूरा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने व्रज में अनेक लीलाएं कीं । उनमें से एक अत्यंत रोचक लीला है ‘भगवान श्रीकृष्ण की योगी लीला’ ।
पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण
ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त समस्त चराचर जगत--जो प्राकृतिक सृष्टि है, वह सब नश्वर है । तीनों लोकों के ऊपर जो गोलोकधाम है, वह नित्य है । गोलोकपति परमात्मा श्रीकृष्ण ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों के एकमात्र ईश्वर और पूर्ण ब्रह्म हैं, जो प्रकृति से परे हैं । ब्रह्मा, शंकर, महाविराट् और क्षुद्रविराट्--सभी उन परमब्रह्म परमात्मा का अंश हैं ।
भगवान श्रीकृष्ण की दावाग्नि-पान लीला
भगवान श्रीकृष्ण की एक अद्भुत रहस्यमयी लीला है—‘दावाग्नि-पान लीला’ । भगवान श्रीकृष्ण ने यह लीला क्यों की और क्या है इसका रहस्य ? इस लीला का वर्णन श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के सत्रहवें अध्याय में किया गया है ।
कुब्जा प्रसंग द्वारा श्रीकृष्ण का संसार को संदेश
संसार में स्त्रियां कुंकुम-चंदनादि अंगराग लगाकर स्वयं को सज्जित करती हैं; किन्तु हजारों में कोई एक ही होती है जो भगवान को अंगराग लगाने की सोचती होगी और वह मनोभिलाषित अंगराग लगाने की सेवा भगवान तक पहुंच भी जाती है क्योंकि उसमें भक्ति-युक्त मन समाहित था । कुब्जा की सेवा ग्रहण करके भगवान प्रसन्न हुए और उस पर कृपा की ।
चंदन, हरिचंदन और गोपीचंदन
चंदन भगवान को बहुत प्रिय है । इसे महाभागवत और सर्वश्रेष्ठ वैष्णव माना जाता है; क्योंकि वह अपने शरीर का क्षय (घिस) कर भगवान के लिए सुगन्धित व शीतलता देने वाला लेप तैयार करता है और एक दिन इसी तरह क्षय होते-होते उसका अंत हो जाता है । उसके इसी त्याग पर रीझ कर भगवान उसे अपने मस्तक व श्रीअंग में धारण करते हैं ।
भगवान विट्ठल और संत सांवता माली
पण्ढरपुर के पास अरणभेंडी नामक ग्राम में सांवता नाम के भक्त हुए । वे माली का काम करते थे और वनमाली श्रीविट्ठल को भजते थे । सांवता सब जगह सब पदार्थों में भगवान को ही देखा करते थे । भगवान विट्ठल और भक्त सांवता के अद्भुत प्रेम की कथा ।
भगवान विष्णु का हंस अवतार
भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों में बीसवां ‘हंस अवतार’ है । श्रीमद्भागवत के एकादश स्कन्ध के तेरहवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धवजी को अपने ‘हंसावतार’ की कथा सुनाई है । भगवान के हंसावतार की सम्पूर्ण जानकारी ।
नन्दबाबा जिनके आंगन में खेलते हैं परमात्मा
जो सभी को आनन्द देते हैं, वह हैं नन्द । नन्दबाबा सभी को चाहते हैं; इसीलिए उनको सभी का आशीर्वाद मिलता है और परमात्मा श्रीकृष्ण उनके घर पधारते हैं । गोलोक में नन्दबाबा भगवान श्रीकृष्ण के नित्य पिता हैं और भगवान के साथ ही निवास करते हैं । जब भगवान ने व्रजमण्डल को अपनी लीला भूमि बनाया तब गोप, गोपियां, गौएं और पूरा व्रजमण्डल नन्दबाबा के साथ पहले ही पृथ्वी पर प्रकट हो गया ।