shri krishna radha ji

गोकुलेश गोविन्द प्रभु, त्रिभुवन के प्रतिपाल ।
गो-गोवर्धन हेतु हरि, आपु बने गोपाल ।।
लीला मात्र न जानिए, है अति मरम विशाल ।
गो-विभूति गोलोक की, गोपालक गोपाल।। (श्रीराधाकृष्णजी श्रोत्रिय, ‘साँवरा’)

गौ मनुष्यों के लिए गोलोक से उतरा हुआ परमात्मा श्रीकृष्ण का एक आशीर्वाद है या यह कहिए कि साक्षात् स्वर्ग ही गाय के रूप में पृथ्वी पर उतर आया है । गौ के बिना जीवन नहीं, गौ के बिना कृष्ण नहीं और कृष्णभक्ति भी नहीं है ।

गौ-गोप-गोपियां और गोपाल से विभूषित है गोलोक

गोलोक ब्रह्माण्ड से बाहर और सबसे ऊपर है । उससे ऊपर दूसरा कोई लोक नहीं है । वहीं तक सृष्टि की अंतिम सीमा है, उसके ऊपर सब शून्य है ।

श्रीगर्ग-संहिता के अनुसार गोलोक में वृन्दावन नाम का ‘निज निकुंज’ है, जो गोष्ठों (गौशाला) और गौओं के समूह से भरा हुआ है। रत्नमय अलंकारों से सजी करोड़ों गोपियां श्रीराधा की आज्ञा से उस वन की रक्षा करती हैं । वहां करोड़ों पीली पूंछ वाली सवत्सा गौएं हैं जिनके सींगों पर सोना मढ़ा है व दिव्य आभूषणों, घण्टों व मंजीरों से विभूषित हैं । नाना रंगों वाली गायों में कोई उजली, कोई काली, कोई पीली, कोई लाल, कोई तांबई तो कोई चितकबरे रंग की हैं । अथाह दूध देने वाली उन गायों के शरीर पर गोपियों की हथेलियों के चिह्न (छापे) लगे हैं । वहां गायों के साथ उनके छोटे-छोटे बछड़े और धर्मरूप सांड भी मस्ती में इधर-उधर घूमते रहते हैं ।

श्रीकृष्ण के समान श्यामवर्ण वाले सुन्दर वस्त्र व आभूषणों से सजे-धजे गोप हाथ में बेंत व बांसुरी लिए हुए गौओं की रक्षा करते हैं और अत्यन्त मधुर स्वर में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का गान करते रहते हैं ।परमात्मा श्रीकृष्ण अपने सर्वोच्च लोक गोलोक में गोपाल रूप में ही रहते हैं और गौ उनके परिकरों (परिवार का अंग) के रूप में  प्रतिष्ठित हैं।

अनन्तकोटि ब्रह्माण्डनायक भगवान श्रीकृष्ण की पूज्या व इष्ट है गौ

परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण के चिन्मय जीवन और लीला-अवतारी जीवन का मुख्य सम्बन्ध गौ से है । इसीलिए वे सदैव गौ-गोप और गोपियों से घिरे हुए चित्रित किए जाते हैं ।

श्रीकृष्णरूप में अवतार ग्रहण करने की प्रार्थना करने के लिए भूदेवी गौ का रूप धारण करके ही भगवान श्रीहरि के पास गयीं थीं । साक्षात् ब्रह्म श्रीकृष्ण गोलोक का परित्याग कर भारतभूमि पर गोकुल (गोधन) का बाहुल्य देखकर अत्यन्त लावण्यमय ‘गोपाल’ का रूप धरकर गौ, देवता, ब्राह्मण और वेदों के कल्याण के लिए अवतीर्ण हुए—

नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मणहिताय च ।
जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नम: ।।

भगवान श्रीकृष्ण ने ‘गोपाल’ बनकर गायों की सेवा (चराना, नहलाना, गोष्ठ की सफाई, दुहना, खेलना) की और उनकी रक्षा की । उनके सखा सहचर सब के सब गोपबालक ही हैं । उनकी हृदयवल्लभाएं  (प्रियाएं) भी घोषवासिनी अर्थात् ग्वालों की बहन-बेटियां हैं । वह लीलापुरुषोत्तम श्रीकृष्ण सुबह से संध्या तक नंगे पैर तपती धूप में गाय-बछड़ों के झुण्ड को लिए हुए अपनी जादूभरी बंशी में मधुर नाद छेड़ते हुए बड़े प्यार से उन्हें चराते है, इस कुंज से उस कुंज तक विचरते रहते है । गायों के खुरों की रज उड़-उड़कर जब उनके श्रीअंगों पर लगती है तो वे ‘पाण्डुरंग’ कहलाते हैं और उस रज के धारण करने से अपने को धन्य मानते हैं । यशोदाजी द्वारा जूते धारण करने का आग्रह भी उन्होंने इसलिए अस्वीकार कर दिया क्योंकि उनकी प्रिय गायें भी वनों में नंगे पैर विचरण करती हैं ।

श्रीमद्भागवत में श्रीशुकदेवजी कहते है कि भगवान गोविन्द स्वयं अपनी समृद्धि, रूप-लावण्य एवं ज्ञान-वैभव को देखकर चकित हो जाते थे (३।२।१२) । श्रीकृष्ण को भी आश्चर्य होता था कि सभी प्रकार के ऐश्वर्य, ज्ञान, बल, ऋषि-मुनि, भक्त, राजागण व देवी-देवताओं का सर्वस्व समर्पण–ये सब मेरे पास एक ही साथ कैसे आ गए? शायद ये मेरी गोसेवा का ही परिणाम है ।

समस्त विश्व का पेट भरने वाले परब्रह्म श्रीकृष्ण की क्षुधा गोमाता के माखन से ही मिटती है—

‘जाको ध्यान न पावे जोगी।
सो व्रज में माखन को भोगी ।।

जो गोपाल बनकर आया है, उसकी रक्षा गायें ही करेंगी–भगवान पर संकट आने पर  उनकी रक्षा का भार भी गोमाता पर आता है । माता यशोदा ने सोचा कि पूतना राक्षसी के स्पर्श से लाला को नजर लगी होगी। गाय की पूंछ से नजर उतारने की प्रेरणा गोपियों को भगवान ने ही दी अत: गोष्ठ में ले जाकर गोपियों ने बालकृष्ण की बाधा उनके मस्तक पर गोपुच्छ फिराकर, गोमूत्र से स्नान कराकर, अंगों में गोरज और गोबर लगाकर उतारी ।

श्रीकृष्ण ने गौओं को इन्द्र से भी अधिक मान दिया फलस्वरूप गौओं ने श्रीकृष्ण का अपने दूध से अभिषेक करके ‘गायों का इन्द्र गोविन्द’ बनाया । श्रीकृष्ण का सर्वश्रेष्ठ मन्त्र है—‘गोविन्दाय गोपीजनवल्लाभ स्वाहा ।’ भगवान श्रीकृष्ण ने अपने लोक को गायों के नाम पर गोलोक का नाम दिया।

गौएं देवताओं के लोकों से भी ऊपर गोलोक में क्यों निवास करती हैं ?

महाभारत (८३।१७-२२) के अनुसार—देवराज इन्द्र के पूछने पर कि गौएं देवताओं के लोकों से भी ऊपर गोलोक में क्यों निवास करती हैं ? ब्रह्माजी ने कहा—

‘गौएं साक्षात् यज्ञस्वरूपा हैं—इनके बिना किसी भी प्रकार का यज्ञ नहीं हो सकता है । गौ के घी से देवताओं को हवि प्रदान की जाती है । गौ की संतान बैलों से भूमि को जोतकर यज्ञ के लिए गेहूं, चावल, जौ, तिल आदि हविष्य उत्पन्न किया जाता है । यज्ञभूमि को गोमूत्र से शुद्ध करते हैं व गोबर के कण्डों से यज्ञाग्नि प्रज्वलित की जाती है । यज्ञ से पूर्व शरीर की शुद्धि के लिए पंचगव्य लिया जाता है जो दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोमय से बनाया जाता है । ब्राह्मण में मन्त्र का निवास है और गौ में हविष्य स्थित है । इन दोनों से ही मिलकर यज्ञ सम्पन्न होता है ।

गौएं मानव जीवन का आधार हैं—समस्त प्राणियों को धारण करने के लिए पृथ्वी गोरूप ही धारण करती है । गौ, विप्र, वेद, सती, सत्यवादी, निर्लोभी और दानी—इन सात महाशक्तियों के बल पर ही पृथ्वी टिकी है पर इनमें गौ का ही प्रथम स्थान है।

गाय मानव की दूसरी मां है, जन्म देने वाली मां के बाद गौ का ही स्थान है । जगत के पालन-पोषण के लिए गौएं ही मनुष्य को अन्न और दुहने पर अमृतरूपी दूध देती हैं। इनके पुत्र बैल खेती के काम में आते हैं और अनेक प्रकार के बीज और अन्न पैदा करते हैं । बैल भूख-प्यास का कष्ट सहकर बोझ ढोते रहते हैं । इस प्रकार गौएं अपने कर्म से मनुष्यों, देवताओं और ऋषि-मुनियों का पोषण करती हैं ।

गाय के रोम-रोम से सात्विक विकिरण

गाय का स्वभाव सात्विक, शांत, धीर एवं गंभीर है । इनके व्यवहार में शठता, कपटता नहीं होती है । सात्विक मन और बुद्धि से ही परमात्मा की प्राप्ति होती है । गौएं बड़ी ही पवित्र होती हैं । गौओं से उत्पन्न दूध, दही, घी, गोबर, मूत्र और रोचना (गोषडंग)—ये छ: चीजें अत्यन्त पवित्र हैं ।

—गौओं के गोबर से लक्ष्मी का निवासस्थान बिल्ववृक्ष उत्पन्न हुआ है ।

—नीलकमल और रक्तकमल के बीज भी गोबर से ही उत्पन्न हुए हैं ।

—गौओं के मस्तक से उत्पन्न ‘गोरोचना’ देवताओं को अर्पण करने से सभी कामनाओं को पूरा करता है ।

—गौ के मूत्र से उत्पन्न गुग्गुल सभी देवताओं का आहार है ।

—सभी देवताओं और वेदों का गौओं में ही निवास है ।

गौएं सदैव अपने कर्म में लगी रहती हैं इसीलिए देवलोकों से ऊपर गोलोक में निवास करती हैं ।

गौ के सम्बन्ध में शतपथ ब्राह्मण (७।५।२।३४) में कहा गया है–’गौ वह झरना है, जो अनन्त, असीम है, जो सैंकड़ों धाराओं वाला है।’

एक समय आता है जब पृथ्वी पर बहने वाले झरने सूख जाते हैं । इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर भी नहीं ले जा सकते हैं किन्तु गाय रूपी झरना इतना विलक्षण है कि इसकी धारा कभी सूखती नहीं । अपनी संतति (संतानों) के द्वारा सदा बनी रहती है । साथ ही इस झरने को एक-स्थान से दूसरे स्थान पर ले भी जा सकते हैं।

ऐसी संसार की श्रेष्ठतम पवित्र सर्वदेवमयी, सर्वतीर्थमयी, यज्ञस्वरूपा गौ का स्थान गोलोक के सिवाय और कहां हो सकता है?

1 COMMENT

  1. Sadar Pranam. Param Brahm Bhagavan kon hei? Shiv, Vishnu, Ram, Krishna ya koi aur Tatva hei? Vo Param Brahm kaha rahte hei? Param moksh ya Nirvan mukti ke lie kis bhagavan ko bhakti kare? Vo Param Brahm tatva ko pane ke lie Kon sa uttam mantra se bhakti nam jap kare? Please bbatayie namaskar

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here