अपनी लीला से भक्तों को जादूगरी दिखलाते हैं भगवान
भगवान प्रेमी जादूगर हैं । वह ढूंढ़-ढूंढ़ कर अपने प्रेमी भक्तों को जादू दिखलाते हैं । अपने जादू से वह भक्तों को ऐसे-ऐसे खेल दिखलाते हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । परन्तु वह यह जादू का खेल खेलते हैं अपने प्रेमी भक्तों की सम्भाल करने और उन्हें अपनाने के लिए । उस जादू की कीमत यह है कि आप उनसे निश्चल प्रेम करें, फिर देखें कि वह अपने जादू से आपका जीवन किस तरह धन्य कर देगें ?
ईश्वर की ऐसी ही जादूगरी की एक सत्य कथा यहां दी जा रही है ।
भगवान चतुर्भुजजी और देवाजी पुजारी
उदयपुर के पास श्रीरूप चतुर्भुज स्वामी का मन्दिर है । देवाजी वहां के पण्डा (पुजारी) थे । वे भगवान की पूजा बड़ी श्रद्धा और विधिपूर्वक करते थे । उदयपुर के राणा प्रतिदिन चतुर्भुजजी के दर्शन के लिए आते थे । एक दिन राणाजी को भगवान चतुर्भुजजी के दर्शन के लिए आने में देर हो गयी । इसलिए पुजारी देवाजी ने भगवान को शयन करा दिया और प्रसादी माला, जो राणाजी को पहनाने के लिए रखी थी, वह स्वयं सिर पर पहन ली ।
देवाजी गर्भगृह के पट बंद करके मन्दिर से बाहर आ ही रहे थे, इतने में ही पुजारी को समाचार मिला कि राणाजी भगवान के दर्शनों के लिए आ रहे हैं । दरवाजे पर राणाजी को देखकर देवाजी मन्दिर में घुस गए और राणाजी को पहनाने के लिए भगवान की दूसरी माला ढूंढ़ने लगे । उस दिन दूसरी माला थी नहीं । राणाजी नाराज न हों इसलिए देवाजी ने प्रसादी माला अपने सिर से उतारकर रख ली और राणाजी के आने पर उसे उनके गले में पहना दिया । देवाजी के सिर के सारे बाल सफेद हो गए थे और लंबे भी थे । संयोगवश देवाजी के सिर का एक सफेद बाल राणाजी को दी गयी माला में लिपटा चला गया ।
राणाजी ने जब माला में सफेद बाल देखा तो पुजारी से व्यंग्य से पूछा—‘क्या ठाकुरजी के सिर के बाल सफेद हो गए हैं ?’ पुजारी देवाजी के मुख से हड़बड़ी में ‘हां’ निकल गया । राणाजी ने कहा—‘मैं स्वयं प्रात:काल आकर देखूंगा ।’
पुजारीजी ‘हां’ ऐसा कह तो गए, परन्तु अब वे घबराए कि राणाजी हमें अवश्य ही मरवा डालेंगे; क्योंकि मैंने झूठ बोला है । उन्हें और कोई उपाय नहीं सूझा । वे भगवान के चरणों का ध्यान करते हुए प्रार्थना करने लगे—
‘हे हृषीकेश ! मेरे मुंह से सहसा ऐसी बात निकल गयी । तुम तो नव किशोर हो, तुम्हारे सफेद बाल कैसे? पर सवेरे महाराणा आकर तुम्हारे काले बाल देखेंगे, तब तुम्हारे इस सेवक की क्या स्थिति होगी ? मुझमें न तो भक्ति है और न श्रद्धा । मैं तो केवल तुम्हें तुलसी-चन्दन चढ़ाकर अपना पापी पेट भरता हूँ । सुबह जब लोग मुझे झूठा पाएंगे तो मेरी कितनी भर्त्सना करेंगे । हे प्रभो ! मैं कैसे कहूं कि तुम मेरी बात रखने के लिए बुढ़ापा स्वीकार कर सफेद बालों वाले बाबाजी बन जाओ । आप तो भक्तरक्षक हैं, परन्तु मेरे मन में तो आपके प्रति जरा सी भी भक्ति नहीं है । मेरे प्राणों की रक्षा के लिए कृपा करके आप अपने बालों को सफेद कर लीजिए । अागे तुम्हें जो ठीक लगे, वही करो ।’’
सारा जगत सो रहा था किसी ने भी देवाजी की करुण पुकार नहीं सुनी । जाग तो केवल देवाजी रहे थे और उनके हृदय के देवता चतुर्भुजजी, जो सबके मन की गुप्त-से-गुप्त बात भी सुनते हैं ।
भक्त की रक्षा के लिए जब भगवान ने अपने सारे बाल किए सफेद
भगवान चतुर्भुज ने लीला की और अपने सारे बाल सफेद कर लिए । चिन्तामग्न पुजारी से ठाकुरजी ने कहा—‘देखो देवा ! मैंने तुम्हारे लिए अपने सारे बाल सफेद कर लिए हैं, न मानो, तो आकर देख लो ।’
भगवान की मधुर वाणी सुनकर दु:ख में डूबे देवाजी की जान-में-जान आयी । स्नान कर उन्होंने गर्भगृह के किंवाड़ खोले, तो उनका हृदय धक् से रह गया । भगवान ने अपने समस्त बाल सफेद कर लिए थे । देवाजी के हृदय की विचित्र दशा थी । वे समझ नहीं पा रहे थे कि यह स्वप्न है या भगवान की साक्षात् अतुलनीय कृपा । प्रेम और आनन्द से उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली ।
दूसरे दिन प्रात:काल राणाजी भगवान के सफेद बाल देखने के लिए मन्दिर में आए । भगवान के श्रीविग्रह में चांदी की तरह चमकते हुए बालों को देखकर कुछ देर तो वे ठगे-से खड़े रह गए, फिर सोचने लगे कि कहीं पुजारी ने अपनी बात रखने के लिए तो सफेद बाल नहीं चिपका दिए ।
जब राणाजी ने ली भगवान के सफेद बालों की परीक्षा
सच-झूठ की परीक्षा करने के लिए उन्होंने भगवान का एक बाल खींचा । बाल के खींचे जाने से मानो ठाकुरजी को पीड़ा हुई और ठाकुरजी ने अपनी नाक सिकोड़ ली । बाल तो उखड़ गया लेकिन भगवान के सिर से खून की धार बह निकली और उसके छींटे राणाजी के अंगरखे पर भी पड़े ।
खून देखकर राणाजी मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े । कुछ समय बाद जब उन्हें होश आया तो वे अपने महाअपराध के लिए भगवान से क्षमा मांगने लगे । उधर देवाजी भी भगवान से रो-रोकर क्षमा मांगने लगे कि मेरी मिथ्या पूजा पर आप इतने प्रसन्न हो गए और मुझ नालायक की बात रखने के लिए आपने अपने सुन्दर किशोर रूप पर श्वेत केशों की रचना कर ली ।
भगवान चतुर्भुज ने राणाजी को दिया दण्ड
भगवान ने राणाजी से कहा—‘तुम्हारे लिए यही दण्ड है कि जो भी राजगद्दी पर बैठे, वह मेरे दर्शनों के लिए मेरे मन्दिर में न आए । जब तक वे कुमार रहेंगे, तभी तक मन्दिर में आ सकेंगे ’
जो भी राजा उदयपुर की राजगद्दी पर बैठता है, भगवान की इस आज्ञा के अनुसार उनकी आन मान कर चतुर्भुजजी के मन्दिर में दर्शन के लिए नहीं जाता है ।
भाव का भूखा हूँ मैं और भाव ही एक सार है।
भाव से मुझको भजे तो भव से बेड़ा पार है।।
भाव बिन सब कुछ भी दे डालो तो मैं लेता नहीं।
भाव से एक फूल भी दे तो मुझे स्वीकार है।।
भाव जिस जन में नहीं उसकी मुझे चिन्ता नहीं।
भाव पूर्ण टेर ही करती मुझे लाचार है।।
Radhey Radhey…🙏🙏🌷🙏🙏