सिद्ध योगी जब अपनी योग-साधना के बल से जीते-जी किसी दूसरे के मृत या जीवित शरीर में सूक्ष्म रूप से प्रवेश कर जाता है, तो उसे परकाया-प्रवेश कहते हैं । दूसरे के शरीर में प्रविष्ट हुआ योगी अपने शरीर की तरह उस शरीर में वर्तता है । भगवान में तो यह शक्ति स्वाभाविक होती है जिसे उनका ‘आवेशावतार’ कहते हैं ।
परमयोगी लोग पंचभूतों के ऊपर प्रभुत्व प्राप्त कर विभिन्न प्रकार के अलौकिक कार्य जैसे—दूरदर्शन, दूरश्रवण, आकाशारोहण (आकाश मार्ग से जाना), योगबल से देह-त्याग करना और परकाया-प्रवेश आदि करने में समर्थ होते हैं । हिमालय की गुफाओं में रहकर योग-साधना करने वाले बहुत-से ऐसे योगी हैं जो कई बार सद्य: (इसी क्षण, इसी समय) मृत युवा के शरीर में प्रवेश करके (परकाया-प्रवेश करके) हजारों वर्षों से अपनी साधना में लगे हैं ।
जीवात्मा के शरीर के तीन रूप हैं—१. स्थूल शरीर, २. सूक्ष्म शरीर, और ३. कारण शरीर ।
१. स्थूल शरीर—पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश—इन पांच तत्त्वों से बना हमारा यह शरीर ही ‘स्थूल शरीर’ है ।
२. सूक्ष्म शरीर—पांच कर्मेन्द्रियां, पांच ज्ञानेन्द्रियां, पंच प्राण, पंचभूत, बुद्धि, मन, अंत:करण, अविद्या, काम और कर्म को मिलाकर ‘सूक्ष्म शरीर’ बनता है । कुछ दार्शनिकों ने आकाश, तेज और वायु इन तीन तत्त्वों को ही सूक्ष्म शरीर माना है । मृत्यु के समय जीवात्मा इस स्थूल शरीर से पृथक् होकर सूक्ष्म शरीर से ही जाता है । प्रेत का शरीर भी इन्हीं तीन तत्त्वों का बना होता है । सूक्ष्म शरीर की यात्रा मन के वेग के समान तीव्र होती है । यह शरीर पारदर्शी होता है । सूक्ष्म शरीर की गति में दीवाल आदि कोई भी चीज बाधा नहीं पहुंचा सकती । योगी लोग सिद्धि प्राप्त करके परकाया-प्रवेश इसी सूक्ष्म शरीर से ही करते हैं ।
३. भारतीय दर्शन के अनुसार तीसरा शरीर कारण शरीर माना गया है ।
परमयोगी श्रीआदिशंकराचार्य का परकाया-प्रवेश
श्रीआदिशंकराचार्य एक महान योगी थे । आचार्य शंकर ने महिष्मती में आचार्य मण्डन मिश्र से शास्त्रार्थ किया, जिसमें मण्डन मिश्र पराजित हुए । मण्डन मिश्र की पत्नी ही इस शास्त्रार्थ की निर्णायिका (जज) थीं । पति की पराजय का निर्णय सुनाकर भारती ने आचार्य शंकर से कहा—‘मुझ अर्धांगिनी को हराये बिना आप विजयी नहीं हो सकते ।’ भारती ने आचार्य शंकर से ‘कामशास्त्र’ पर शास्त्रार्थ करने का प्रस्ताव रखा और रतिशास्त्र पर प्रश्न पूछे । आचार्य शंकर बाल-ब्रह्मचारी थे, वे कामशास्त्र की बात क्या जानें ? उन्होंने भारती से छ: मास का समय मांगा । भारती ने छ: मास का समय दे दिया, वे यह नहीं जानती थीं कि आचार्य शंकर एक महान सिद्ध योगी भी हैं । वे परकाया-प्रवेश भी जानते हैं ।
उधर आचार्य शंकर अपने शिष्यों के साथ एक गुफा में पहुंचे । उन्होंने शिष्यों को अपनी योजना बताते हुए कहा—‘मैं मृत राजा अमरुक के शरीर में प्रवेश कर श्रृंगार-रस का अध्ययन करुंगा, तब तक मेरे भौतिक शरीर की तुम लोग रक्षा करना । यदि वहां से वापिस लौटने में बिलम्ब हो जाए तो मेरे पास आकर मुझे मोहमुद्गर के श्लोक सुनाना ।’
आचार्य शंकर समाधि लगाकर सूक्ष्म शरीर के सहारे एक सद्य: मृत राजा अमरुक के शरीर में प्रवेश कर गये । राजा को पाकर राज्य में आनन्द की लहर दौड़ गई । रानियां आनन्दसागर में गोते लगाने लगीं । राजा के शरीर में स्थित आचार्य शंकर ने छ: मास के पूर्व ही कामशास्त्र का अध्ययन कर लिया ।
आचार्य के प्रमुख शिष्य उस स्थूल शरीर की छ: मास से सावधानीपूर्वक रक्षा कर रहे थे । आचार्य शंकर ने राजा अमरूक का शरीर छोड़कर अपने सूक्ष्म शरीर को गुफा में स्थित अपने उस स्थूल शरीर में प्रवेश करा दिया ।
अब आचार्य शंकर ने शास्त्रार्थ में भारती को परास्त किया । मण्डन मिश्र भी श्रीशंकराचार्य के शिष्य बन गये और उनका नाम ‘सुरेश्वराचार्य’ हुआ जिन्हें आचार्य शंकर ने श्रृंगेरीपीठ पर विराजित किया । वहीं पर उनकी पत्नी भारती की प्रस्तर-प्रतिमा प्रतिष्ठित है । ऐसा कहा जाता है कि स्वयं भारती ने उस मूर्ति में प्रवेश किया । तब से एक संन्यासी-सम्प्रदाय ‘भारती-सम्प्रदाय’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
सचमुच सच्चे योगी चमत्कारिक कार्यों को करने की शक्ति रखते हैं । योगी का आत्मा इतना उन्नत हो जाता है कि वह परमात्मा के तादात्म्य को प्राप्त कर लेता है ।