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भगवान श्रीकृष्ण : ‘नक्षत्रों में मैं चंद्रमा हूँ’

भगवान की दिव्य विभूति वे वस्तुएं या प्राणी हैं, जिनमें भगवान के तेज, बल, विद्या, ऐश्वर्य, कांति और शक्ति आदि विशेष रूप से हों । संसार में जो भी ऐश्वर्ययुक्त, कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है, वह सब भगवान के तेज का अंश होने से उनकी विभूति हैं ।

कर्मयोग के प्रथम श्रोता भगवान सूर्य देव

अर्जुन ने आश्चर्यचकित होकर भगवान से पूछा—‘सूर्य का जन्म तो आपके जन्म से बहुत पहले हुआ था; इसलिए यह कैसे माना जाए कि आपने यह विद्या सूर्य को दी थी ?’ भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—‘अर्जुन ! मेरे और तुम्हारे दोनों के अनेक जन्म हो चुके हैं । मैं उन सबको जानता हूँ; किंतु तुम नहीं जानते ।’

‘हरे राम हरे कृष्ण’ मंत्र का अर्थ

द्वापर के अंत में नारद जी ब्रह्मा जी के पास जाकर बोले—‘भगवन् ! मैं पृथ्वीलोक में किस प्रकार कलि के दोषों से बच सकता हूँ ।’ ब्रह्माजी ने कहा—‘भगवान आदिनारायण के नामों का उच्चारण करने से मनुष्य कलि के दोषों से बच सकता है ।’ नारद जी ने पूछा—‘वह कौन-सा नाम है ?’

क्या भगवान का जन्म मनुष्यों की भांति होता है ?

‘हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ । साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप-कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ ।’

कल्पवृक्ष के समान श्रीकृष्ण के नाम

भगवान श्रीकृष्ण का नाम चिन्तामणि, कल्पवृक्ष है--सब अभिलाषित फलों को देने वाला है। यह स्वयं श्रीकृष्ण है, पूर्णतम है, नित्य है, शुद्ध है, सनातन है। भगवान के नाम अनन्त हैं, उनकी गणना कर पाना किसी के लिए भी सम्भव नहीं। यहां कुछ थोड़े से प्रचलित नामों का अर्थ दिया जा रहा है ।

सप्तर्षियों के पूजन का पर्व है ऋषि पंचमी

श्रीमद्भागवत के अनुसार सप्तर्षि भगवान श्रीहरि के अंशावतार अथवा कलावतार हैं; इसलिए ब्रह्मतेज और करोड़ों सूर्य की आभा से संपन्न हैं । गृहस्थ होते हुए भी ये मुनि-वृत्ति से रहते हैं । आकाश में सप्तर्षिमण्डल समस्त लोकों की मंगलकामना करते हुए भगवान विष्णु के परम पद ध्रुव लोक की प्रदक्षिणा किया करता है ।

‘गीत गोविन्द’ जिसका अंतिम पद स्वयं श्रीकृष्ण ने पूरा किया

भगवान जगन्नाथ जी का ही स्वरूप माने जाने वाले महाकवि जयदेव द्वारा रचित महाकाव्य ‘गीत गोविन्द’ की महिमा का वर्णन कौन कर सकता है ? जिस पर रीझ कर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपने हाथ से पद लिख कर उसे पूरा किया । जयदेव जी और उनकी पत्नी पद्मावती श्रीकृष्ण प्रेमरस में डूबे रहते थे । जयदेव जी को भगवान के दशावतारों के प्रत्यक्ष दर्शन हुए थे ।

मन का हो तो अच्छा, मन का ना हो तो और...

एकनाथ जी को अनुकूल पत्नी मिली तो उन्हें उसमें आनंद है और तुकाराम जी को प्रतिकूल पत्नी मिली तो वे उसमें खुश हैं और तीसरे नरसी जी की पत्नी संसार छोड़ कर चली गई; फिर भी तीनों संत अपनी-अपनी परिस्थिति से संतुष्ट हैं और वे इसके लिए भगवान का उपकार मानते हैं ।

ढाई अक्षर के ‘कृष्ण’ नाम के बड़े-बड़े अर्थ

‘कृष्ण’ नाम की कई व्याख्याएं मिलती हैं जो यह दर्शाती है कि श्रीकृष्ण में सब देवताओं का तेज समाया हुआ है, वे परब्रह्म परमात्मा है, आदिपुरुष हैं, भक्ति के दाता व महापातकों का नाश करने वाले हैं । श्रीकृष्ण का नाम चिन्तामणि, कल्पवृक्ष है--सब अभिलाषित फलों को देने वाला है ।

गरुड़, सुदर्शन चक्र और श्रीकृष्ण की पटरानियों का गर्व-हरण

जहां-जहां अभिमान है, वहां-वहां भगवान की विस्मृति हो जाती है । इसलिए भक्ति का पहला लक्षण है दैन्य अर्थात् अपने को सर्वथा अभावग्रस्त, अकिंचन पाना । भगवान ऐसे ही अकिंचन भक्त के कंधे पर हाथ रखे रहते हैं । भगवान अहंकार को शीघ्र ही मिटाकर भक्त का हृदय निर्मल कर देते हैं ।