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भगवान शंकर का विचित्र दूल्हावेष
कहां तुम कमल के समान विशाल नेत्र वाली और कहां शिव भयंकर तीन नेत्रों वाले विरुपाक्ष? कहां तुम चन्द्रमा के समान मुख वाली और कहां शिव पांच मुख वाले, तुम्हारे सिर पर सुन्दर वेणी और शिव के सिर पर जटाजूट, तुम्हारे शरीर पर चंदन का लेप और शिव के शरीर पर चिताभस्म, कहां तुम्हारा दुकूल और कहां शिव का गजचर्म! कहां तुम्हारे दिव्य आभूषण और कहां शिव के सर्प और मुण्डमाला ! कहां तुम्हें सुख देने वाला मृदंगवाद्य व भेरी की ध्वनि और कहां उनका डमरु और अशुभ श्रृंगी का शब्द? कहां तुम्हारे बाजे ‘ढक्का’ का शब्द और कहां उनका अशुभ गले का शब्द।
देवाधिदेव भगवान शिव और जगदम्बा पार्वती का विवाहोत्सव
पर्वतराज हिमालय ने सब प्रकार की लौकिक-वैदिक विधियों को सम्पन्न करके हाथ में जल और कुश लेकर कन्यादान का संकल्प किया। पर्वतराज हिमालय ने हंसकर शिवजी से कहा--’शम्भो! आप अपने गोत्र का परिचय दें। प्रवर, कुल, नाम, वेद और शाखा का प्रतिपादन करें।’ नाम पूछे जाने पर वर का नाम ‘शिव’ बताया गया, पर इनके पिता का नाम पूछने पर सब चुप हो गए। कुछ समय सोचने के बाद ब्रह्माजी ने कहा कि इनका पिता मैं ‘ब्रह्मा’ हूँ और पितामह का नाम पूछने पर ब्रह्माजी ने ‘विष्णु’ बताया। इसके बाद प्रपितामह का नाम पूछने पर सारी सभा अत्यन्त मौन रही। अंत में मौन भंग करते हुए शिवजी स्वयं बोले कि सबके प्रपितामह तो हम ही हैं।