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भगवान शंकर का विचित्र दूल्हावेष
कहां तुम कमल के समान विशाल नेत्र वाली और कहां शिव भयंकर तीन नेत्रों वाले विरुपाक्ष? कहां तुम चन्द्रमा के समान मुख वाली और कहां शिव पांच मुख वाले, तुम्हारे सिर पर सुन्दर वेणी और शिव के सिर पर जटाजूट, तुम्हारे शरीर पर चंदन का लेप और शिव के शरीर पर चिताभस्म, कहां तुम्हारा दुकूल और कहां शिव का गजचर्म! कहां तुम्हारे दिव्य आभूषण और कहां शिव के सर्प और मुण्डमाला ! कहां तुम्हें सुख देने वाला मृदंगवाद्य व भेरी की ध्वनि और कहां उनका डमरु और अशुभ श्रृंगी का शब्द? कहां तुम्हारे बाजे ‘ढक्का’ का शब्द और कहां उनका अशुभ गले का शब्द।