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तुलसीदासजी ने अपनी वातपीड़ा दूर करने के लिए रचा ‘हनुमानबाहुक’
वातपीड़ा दूर करने वाला रामबाण स्तोत्र 'हनुमानबाहुक', हनुमानबाहुक' के तीन पाठ मिटा देते हैं वातरोग, तुलसीदासजी ने 'हनुमानबाहुक' के रूप में हनुमानजी के दरबार में लगाया अपना प्रार्थना-पत्र, 'हनुमानबाहुक’ रूपी मन्त्रात्मक वन्दना से तुलसीदासजी की पीड़ा हुयी दूर, 'हनुमानबाहुक' पाठ की विधि।
श्रीराम की सेवा के लिए शंकरजी ने लिया हनुमान का अवतार
हनुमन्नाटक के एक प्रसंग में रावण मन-ही-मन यह सोचता है कि मेरे दसों सिरों को चढ़ाने से शिवजी तो प्रसन्न हो गए, परन्तु एकादश रुद्र को मैं संतुष्ट न कर सका (हनुमानजी ग्यारहवें रुद्र के अंश माने जाते हैं); क्योंकि मेरे पास ग्यारहवां सिर था ही नहीं। इसी कारण शिवकोप से ही मेरी लंका का दहन हुआ। मैंने शिव और रुद्र में भेद किया, मेरी मति मारी गयी थी जो मैंने ऐसा किया।