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भक्त माधवदास जिनके सेवक बने भगवान जगन्नाथ
भगवान में प्रेम वह मादक मदिरा है, जिसने भी इसे चढ़ा लिया वह मस्त हो गया । उस मतवाले की बराबरी कोई नहीं कर सकता । संसार के शहंशाह भी उसके गुलाम हैं । त्रिलोकी का राज्य उसके लिए तिनके के समान है । वह तो सदा अपनी मस्ती में ही मस्त रहता है । भगवान के प्रेमी-भक्त को वे सारे पदार्थ और व्यक्ति बाधक लगने लगते हैं, जो भगवान से जुड़े नहीं हैं ।
भगवान जगन्नाथ के अद्भुत स्वरूप का रहस्य
श्रीकृष्णतेज से उत्पन्न इन्द्रनीलमणि श्रीजगन्नाथ विग्रह है। अत: वह साक्षात् वासुदेव कृष्ण हैं। नवकलेवर उत्सव में भगवान जगन्नाथ की दारु मूर्ति के अंदर कृष्णसत्ता पूजन के रूप में इन्द्रनीलमणि मूर्ति प्रतिष्ठित की जाती है।