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पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के कर्तव्य
नित्य कृष्ण सेवा को छोड़कर पुष्टिमार्गीय वैष्णवों का न कोई और धर्म है और न ही कर्तव्य । अपनी देह के सुख को त्याग करके, ठाकुर जी को सुख मिले—इस भाव से भगवान की सेवा करनी चाहिए । यंत्र के समान या कर्मकाण्ड के रूप में या बोझ मान कर केवल खानापूर्ति के लिए भगवान की सेवा नहीं करनी चाहिए ।
श्रीमद्वल्लभाचार्यजी विरचित ‘कृष्णाश्रय’ स्तोत्र
कृष्णाश्रय का अर्थ है सदा-सर्वदा पति, पुत्र, धन, गृह--सब कुछ श्रीकृष्ण ही हैं-- इस भाव से व्रजेश्वर श्रीकृष्ण की सेवा करनी चाहिए, भक्तों का यही धर्म है । इसके अतिरिक्त किसी भी देश, किसी भी वर्ण, किसी भी आश्रम, किसी भी अवस्था में और किसी भी समय अन्य कोई धर्म नहीं है ।
वल्लभ सम्प्रदाय में श्रीकृष्ण की वात्सल्यपूर्ण अष्टयाम सेवा
पुष्टिमार्ग में ठाकुरजी की अर्चना को ‘सेवा’ क्यों कहते हैं ?
श्रीमद्वल्लभाचार्यजी और प्रेम का पन्थ पुष्टिमार्ग
श्रीमद्वल्लभाचार्यजी का प्रादुर्भाव भारतभूमि पर उस समय हुआ जब भारतीय संस्कृति पर चारों ओर से यवनों के आक्रमण हो रहे थे। समाज में भगवान के प्रति अनास्था, संघर्ष व अशान्ति फैली हुई थी। लोगों के जीवन में आनन्द तो दूर रहा, कहीं भी न तो सुख था और न शान्ति। ऐसे समय में साक्षात् भगवदावतार श्रीमन्महाप्रभुजी श्रीमद्वल्लभाचार्यजी ने अवतरित होकर भारतवासियों के जीवन को रसमय और आनन्दमय बना दिया।
भगवान श्रीकृष्ण के चरण-कमल
भगवान के चरण-चिह्नों का परिचय एवं पुष्टिमार्ग के आराध्य श्रीनाथजी के चरण-कमल
भगवान के चरण-कमल बड़े ही दुर्लभ हैं और सेवा के लिए उनकी प्राप्ति होना और भी कठिन है। लक्ष्मीजी भगवान के चरण-कमलों को ही भजती हैं अत: नवधा भक्ति में ‘पाद सेवन’ भक्ति लक्ष्मीजी को सिद्ध है।