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करमाबाई की खिचड़ी
करमाबाई अपने गोपाल को अपने हृदयचक्षु (मन की आंखों) से भोग लगाते देखती थी। परमेश्वर गोपाल के रूप में करमाबाई की खिचड़ी का भोग लगाता था। करमाबाई अपने प्रभु के धाम पहुंच गयी पर उस कुटिया में मैया की खिचड़ी का स्वाद उस सर्वेश्वर जगन्नाथ को ऐसा लगा कि वह अपनी आप्तकामता को भूलकर रो-रोकर उसकी खिचड़ी के लिए पुकारता था--‘मैया री! मैं भूखा हूँ, मुझे खिचड़ी दे।’ आज उसकी कुटिया खाली पड़ी है, पर उसमें है एक प्यारी सी, नन्हीं-सी, भोली-सी गोपाल की मूर्ति। लोगों ने कई दिनों तक उस मूर्ति से रोने की आवाज को सुना था।