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व्रज में गोपी बने त्रिपुरारि
महारास में गोपियों के मण्डल में मिलकर गोपीरूप शंकरजी अतृप्त नेत्रों से मनमोहन श्रीकृष्ण की रूपमाधुरी का पान करने लगे। रासेश्वर श्रीकृष्ण और रासेश्वरी श्रीराधा को गोपियों के साथ नृत्य करते देखकर भोलेनाथ स्वयं भी ‘तत थेई थेई’ कर नाचने लगे। तभी श्यामसुन्दर ने ऐसी मोहनी वंशी बजाई कि भोलेनाथ अपनी सुध-बुध भूल गए और उनके सिर से घूंघट हट गया और उनकी जटाएं बिखर गईं।