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देवता और पितर दोनों को क्यों प्रिय हैं तिल ?
माघी पूर्णिमा के दिन कांस्य पात्र में तिल भरकर इस भावना से दान करें कि ‘मां इन तिलों की संख्या से अधिक दु:ख तुमने मेरे लिए सहन किए हैं । अत: इस तिलपात्र के दान से मैं तुम्हारे मातृ-ऋण से उऋण हो जाऊं ।’
इस प्रकार इस दिन माता के निमित्त जो भी कुछ दान दिया जाता है, वह अक्षय हो जाता है ।