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भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण और ब्राह्मण कण्व
नन्दरानी यह नहीं जानतीं कि नन्दबाबा के पकड़े जाने पर भी उनका नीलमणि कभी का गोशाला के अन्दर पहुंचकर भोग अरोग रहा है। वह यह भी नहीं जानतीं कि जो अजन्मा है, अनादि है, अनन्त है, पूर्ण है, पुरुषोत्तम है, निर्गुण है, सत्य है, प्रत्येक कल्प में स्वयं अपने-आप में अपने-आप का ही सृजन करता है, पालन करता है और फिर संहार कर लेता है, वही विराट् पुरुष मेरा नीलमणि है। उन्हें तो यह भान ही नहीं है कि मेरी गोद में रहते हुए भी ठीक उसी क्षण मेरा नीलमणि अनन्त रूपों में अवस्थित है।