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रावण का उत्कर्ष और पतन

अभिमानी दशानन ने कैलासपर्वत को मूल से उखाड़कर अपने कंधों पर उठा लिया। पर्वत हिलते देखकर शिवजी ने कहा--’यह क्या हो रहा है? पार्वतीजी ने हंसते हुए कहा--’आपका शिष्य आपको गुरुदक्षिणा दे रहा है।’ यह अभिमानी रावण का कार्य है, ऐसा जानकर शिवजी ने उसे शाप देते हुए कहा--’अरे दुष्ट! शीघ्र ही तुझे मारने वाला उत्पन्न होगा।’ शिवजी ने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत को दबा दिया। दशानन का कंधा और हाथ पर्वत के नीचे दब गए तो वह जोर-जोर से रुदन करने लगा। दीर्घकाल तक रुदन करते-करते उसने भगवान शंकर की स्तुति की, जो ताण्डव स्तुति के नाम से प्रसिद्ध है।

श्रीहनुमान को भगवान श्रीराम का आलिंगनदान

भगवान श्रीराम ने हनुमानजी के बुद्धिकौशल व पराक्रम को देखकर उन्हें अपना दुर्लभ आलिंगन प्रदान किया। भगवान श्रीराम हनुमानजी से कहते हैं--‘संसार में मुझ परमात्मा का आलिंगन मिलना अत्यन्त दुर्लभ है। हे वानरश्रेष्ठ! तुम्हे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है। अत: तुम मेरे परम भक्त और प्रिय हो।’