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श्रीराधा का रूप-माधुर्य
‘मेरी उन श्रीराधा के प्रेमराज्य में मलिन काम-भोग की लेशमात्र कल्पना भी नहीं है। रागरहित श्रृंगार है, मोहरहित पवित्र प्रेम है, निज-सुख-इच्छा से रहित ममता है, स्वादरहित सब खान-पान है, अभिमान से रहित अति मान है। मेरी वे साध्यस्वरूपा श्रीराधा नित्य तृप्त हैं और श्रीमाधव की पवित्रतम परमाराध्य हैं।’