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भगवान विट्ठल और भक्त कूर्मदास
भगवान भक्त का ‘प्रेम’ ही चाहते हैं, बस प्रेम से उन्हें पुकारने, उनका नित्य स्मरण करने और उनके वियोग में विकल रहने की आवश्यकता है, उन्हें रीझते देर नहीं लगती, कोई पुकार करके तो देखे । यदि मनुष्य उनसे सच्चा प्रेम करें, तो वे अवश्य उसके हो जायेंगे फिर उसका जीवन ही धन्य हो जायेगा ।