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भगवान विट्ठल और संत तुकाराम
भक्त के हृदय की करुण पुकार कभी व्यर्थ नहीं जाती, वह चाहे कितनी भी धीमी क्यों न हो, त्रिभुवन को भेदकर वह भगवान के कानों में प्रवेश कर ही जाती है और भगवान के हृदय को उसी क्षण द्रवित कर देती है । ऐसा ही एक प्रसंग है—भगवान विट्ठल और संत तुकाराम का ।