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जानकी जी की रुदन लीला
भगवान शंकर और श्रीरामजी में अनन्य प्रेम है । जब-जब भगवान पृथ्वी पर अवतरित होते हैं, तब-तब भोले-भण्डारी भी अपने आराध्य की मनमोहिनी लीला के दर्शन के लिए पृथ्वी पर उपस्थित हो जाते हैं । भगवान शंकर एक अंश से अपने आराध्य की लीला में सहयोग करते हैं और दूसरे रूप में उनकी लीलाओं को देखकर मन-ही-मन प्रसन्न होते हैं ।
रावण ने श्रीराम से ही नहीं कौसल्या से भी निभाया वैर
संसार में सभी भयों में मृत्य का भय सबसे बड़ा माना गया है । सांसारिक विषयी पुरुष के लिए शरीर ही सब कुछ होता है; इसीलिए मृत्यु निकट जान कर मनुष्य अपना विवेक और धैर्य खो देता है । न तो उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान रहता है, न ही उसे भूख-प्यास लगती है; साथ ही रात-दिन का चैन भी समाप्त हो जाता है ।