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भगवान श्रीकृष्ण की योगी लीला

भक्तों को दिए वरदानों और उनके मनोरथों को पूरा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने व्रज में अनेक लीलाएं कीं । उनमें से एक अत्यंत रोचक लीला है ‘भगवान श्रीकृष्ण की योगी लीला’ ।

श्रीहनुमंतलला का अलौकिक बालचरित्र

हनुमंतलला का बालपन भी कितना दिव्य था । सदाचारिणी, परम तपस्विनी, सद्गुणी माता अंजना अपने दूध के साथ श्रीरामकथा रूपी अमृत उन्हें पिलाती थीं । हनुमंतलला उस कथा को सुनकर भाव-विभोर हो जाते । कथा कहते हुए यदि माता सो जाती को हनुमंतलला उन्हें हाथों से झकझोर कर और रामकथा सुनाने के लिए हठ करते थे |

भगवान श्रीकृष्ण की लिलहारी लीला

जब श्रीकृष्ण ने सुना कि श्रीराधा अपने रोम-रोम पर उनका नाम लिखवाना चाहती हैं, तो वे खुशी से बौरा गए। उन्हें अपनी सुध नहीं रही। वे खड़े होकर जोर-जोर से नाचने और उछलने लगे और भूल गए कि वो वृषभानुमहल में एक लालिहारण के वेश में श्रीराधा के सामने ही बैठे हैं।

क्यों मधुर है श्रीकृष्ण का रास-नृत्य ?

‘रास’ का सम्बन्ध भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों से है। रास वृन्दावन का वास्तविक नृत्य है। श्रीकृष्ण अकेले रास नहीं कर सकते। रास की आधार हैं श्रीराधा; इसलिए उन्होंने अपनी आह्लादिनी शक्ति श्रीराधा के साहचर्य से रास रचाया, रस बरसाया, रस प्राप्त किया और रस प्रदान किया तथा ‘रासबिहारीलाल’ कहलाए। भगवान श्रीकृष्ण की अन्तरंग आह्लादिनी शक्ति श्रीराधाजी और उनकी निजस्वरूपा गोपबालाओं के साथ होने वाली कन्हैया की रस एवं माधुर्य से ओत-प्रोत संगीतमय लीला का नाम ‘रास’ है।

नृत्यकला के आदिगुरु भगवान श्रीकृष्ण (I)

क्रोध में उन्मत्त, भीषण विषधर कालियनाग के भयानक फनों पर नृत्य करना भगवान श्रीकृष्ण की नृत्यकला की पराकाष्ठा है। तलवार की धार पर, सूत पर तथा अग्नि में भी कुशल कलाकार नृत्य कर लेते हैं; पर यहां सौ फन वाले सर्प के फनों पर नृत्य हो रहा था। भगवान शंकर तो ताण्डव करते हैं, किन्तु व्रजराज श्रीकृष्ण आज विचित्रताण्डव कर रहे हैं। श्रीकृष्ण के नागनृत्य में उनकी शरीरसाधना, चरणविन्यास, विचित्र मनोयोग और अनुपम सौन्दर्य का अद्भुत मेल है। इसके अलावा नंदमहल में श्रीकृष्ण की बालसुलभ क्रीड़ाओं में भी उनकी अद्वितीय नृत्यकला देखने को मिलती है।

भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण और ब्राह्मण कण्व

नन्दरानी यह नहीं जानतीं कि नन्दबाबा के पकड़े जाने पर भी उनका नीलमणि कभी का गोशाला के अन्दर पहुंचकर भोग अरोग रहा है। वह यह भी नहीं जानतीं कि जो अजन्मा है, अनादि है, अनन्त है, पूर्ण है, पुरुषोत्तम है, निर्गुण है, सत्य है, प्रत्येक कल्प में स्वयं अपने-आप में अपने-आप का ही सृजन करता है, पालन करता है और फिर संहार कर लेता है, वही विराट् पुरुष मेरा नीलमणि है। उन्हें तो यह भान ही नहीं है कि मेरी गोद में रहते हुए भी ठीक उसी क्षण मेरा नीलमणि अनन्त रूपों में अवस्थित है।

माता यशोदा का श्रीकृष्ण-प्रेम

माता यशोदा के सौभाग्य का वर्णन कौन कर सकता है, जिनके स्तनों को साक्षात् ब्रह्माण्डनायक ने पान किया है। भगवान ने अपने भक्तों की इच्छा के अनुरूप अनेक रूप धारण किए हैं, परन्तु उनको ऊखल से बांधने का या छड़ी लेकर ताड़ना देने का सौभाग्य केवल महाभाग्यशाली माता यशोदा को ही प्राप्त हुआ है। ऐसा सुख, ऐसा वात्सल्य-आनन्द संसार में किसी को प्राप्त न हुआ है, न होगा। श्रीशुकदेवजी तो श्रीयशोदाजी को वात्सल्य-साम्राज्य के सिंहासन पर बिठाकर उनको दण्डवत् करते हुए कहते हैं--’देवी ! तुम्हारे जैसा कोई नहीं है। तुम्हारी गोद में तो सम्पूर्ण फलों-का-फल नन्हा-सा शिशु बनकर बैठा है।’

भगवान कृष्ण के बालरूप के दर्शन के लिए शंकरजी की जोगी...

भगवान शिव के इष्ट हैं विष्णु। जब विष्णुजी ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया तो अपने इष्ट के बाल रूप के दर्शन और उनकी लीला को देखने के लिए शिवजी ने जोगी रूप बनाया।