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भगवान की पूजा या सेवा
सामान्य भाषा में भगवान की ‘सेवा’ और ‘पूजा’ दोनों का समान अर्थ माना जाता है; लेकिन वैष्णव आचार्यों ने भाव के अनुसार इनमें बहुत बड़ा अंतर माना है । जानते हैं, भगवान की सेवा और पूजा में अंतर क्या अंतर है ?
कलियुग में साक्षात् गोपी अवतार है मीराबाई
मनुष्य का भगवान से केवल सम्बन्ध हो जाना चाहिए । वह सम्बन्ध चाहे जैसा हो—काम का हो, क्रोध का हो, स्नेह का हो, नातेदारी का हो या और कोई हो । चाहे जिस भाव से भगवान में अपनी समस्त इन्द्रियां और मन जोड़ दिया जाए तो उस जीव को भगवान की प्राप्ति हो ही जाती है ।
श्रीलड्डूगोपाल की पूजा की सरल विधि
‘योगी जिन्हें ‘आनन्द’ कहते हैं, ऋषि-मुनि ‘परमात्मा’ कहते हैं, संत ‘भगवान’ कहते हैं, उपनिषद् ‘ब्रह्म’ कहते हैं, वैष्णव ‘श्रीकृष्ण’ कहते हैं और माताएं व बहनें प्यार से ‘गोपाल’, ‘लाला’ या ‘लड्डूगोपाल’ कहती हैं, वह एक ही तत्त्व है । ये सब अनेक नाम एक ही परब्रह्म के हैं ।’