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भगवान कृष्ण के बालरूप के दर्शन के लिए शंकरजी की जोगी...
भगवान शिव के इष्ट हैं विष्णु। जब विष्णुजी ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया तो अपने इष्ट के बाल रूप के दर्शन और उनकी लीला को देखने के लिए शिवजी ने जोगी रूप बनाया।
भगवान श्रीकृष्ण की नौका विहार लीला
जिस प्रकार भगवान अनंत हैं, उसी प्रकार उनकी लीला भी अनंत हैं। भगवान की अनंतता और उनकी लीलाओं की विचित्रता अकथनीय है। उनकी प्रत्येक लीला का गोपनीय रहस्य है जिसे संसार नहीं समझ सकता। ऐसी ही उनकी एक लीला है नौका विहार लीला।
श्रीकृष्ण और उनकी प्रिय गायें
भगवान श्रीकृष्ण को गाय अत्यन्त प्रिय है। भगवान ने गोवर्धन पर्वत धारण करके इन्द्र के कोप से गोप, गोपी एवं गायों की रक्षा की। अभिमान भंग होने पर इन्द्र एवं कामधेनु ने भगवान को 'गोविन्द' नामसे विभूषित किया। गो शब्द के तीन अर्थ हैं-इन्द्रियाँ, गाय और भूमि। श्रीकृष्ण इन तीनों को आनन्द देते हैं। गौ, ब्राह्मण तथा धर्म की रक्षा के लिए ही श्रीकृष्ण ने अवतार लिया है।
बालकृष्ण का अन्नप्राशन महोत्सव
माघमास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथी की प्रभात वेला है। आज बालकृष्ण पाँच महीने और इक्कीस दिन के हो गये हैं। माँ यशोदा तो आज सारी रात जागी हुयी हैं। वह बालकृष्ण के अन्नप्राशन महोत्सव की सुखमय कल्पना में सारी रात विभोर थीं। सूर्योदय में अभी बिलम्व है, किन्तु गोपसुन्दरियों के दल-के-दल नँद-भवन में एकत्रित होने लगे हैं। छोटे शिशुओं को गोद में लेकर, थोड़े बड़े पुत्रों की अँगुली पकड़े, मंगलगीत गाते हुए गोपसुन्दरियाँ अपनी किंकणी के नूपुरों से सारे वातावरण को झंकारित करती हुयी नँद-भवन की ओर चली जा रही हैं। मन में उमंग लिये कि हम ही सबसे पहले बालकृष्ण के दर्शन कर लें। गोपमण्डली भी विविध वेशभूषा व अलंकारों से सज्जित होकर नँद-भवन की ओर चल पड़े। उसी समय माँ यशोदा अपने पुत्र को लेकर आँगन में आती हैं गोपियों की अपार भीड़ उन्हें चारों ओर से घेर लेती है।
बालकृष्ण की विभिन्न बाललीलाएँ और सूरदासजी द्वारा उनका वर्णन
सूरदासजी उच्चकोटि के संत होने के साथ-साथ उच्चकोटि के कवि थे। इन्हें वात्सल्य और श्रृंगार रस का सम्राट कहा जाता है। सूरदासजी अँधे थे परन्तु इन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त थी। जैसा भगवान का स्वरूप होता था, वे उसे अपनी बंद आँखों से वैसा ही वर्णन कर देते थे।
श्रीकृष्ण की पैर का अंगूठा पीने की लीला
बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को पीने के पहले यह सोचते हैं कि क्या कारण है कि बड़े-बड़े ऋषि मुनि अमृतरस को छोड़कर मेरे चरणकमलों के रस का पान करते हैं। क्या यह अमृतरस से भी ज्यादा स्वादिष्ट है? इसी बात की परीक्षा करने के लिये बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को पीने की लीला किया करते थे।
भगवान नीलवर्ण क्यों हैं?
भगवान चाहे राम हो, कृष्ण हो या विष्णु; सभी का वर्ण नीला ही है। इसीलिये इन्हें नीलाम्बुज, मेघवर्ण, नीलमणि, गगनसदृश आदि उपमाएं दी जाती हैं। प्रश्न यह है कि भारतीय संस्कृति में चित्रों व प्रतिमाओं में भगवान को नीलवर्ण का क्यों दिखाया जाता है?
मैया मेरी, चन्द्र खिलौना लैहौं
श्रीकृष्ण की बालहठ लीला
मैया मेरी, चन्द्र खिलौना लैहौं,
धौरी को पय पान न करिहौ, बेनी सिर न गुथेहौं।
मोतिन माल न धरिहौं उर पर, झंगुली कंठ...
श्रीकृष्ण के मोरपंख व गुँजामाला धारण करने का रहस्य
बर्हापीडं नटवरवपु: कर्णयो: कर्णिकारं
बिभ्रद् वास: कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम्।
रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन् गोपवृन्दै-
र्वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्ति:।।
प्रस्तुत श्लोक में श्रीकृष्ण की अद्भुत मोहिनी शोभा का वर्णन...