Home Tags Krishna

Tag: Krishna

भगवान श्रीकृष्ण का व्रज में अद्भुत माधुर्य एवं ऐश्वर्य

व्रज में श्रीकृष्ण की न तो कोई सेना थी, और न ही कोई अस्त्र-शस्त्र। न ही उनका उग्ररूप कभी प्रकट हुआ और न ही कोई युद्ध लम्बा चला। राक्षस आया और खेलते-खेलते दो घड़ी में ही कन्हैया ने उसका काम-तमाम कर दिया । इसीलिए ब्रह्माण्डपुराण में नारदजी ने कहा है--‘चक्रधारी नारायण चक्र धारण करके भी जिन असुरों का विनाश सहज में नहीं कर सकते, श्रीकृष्ण ने नयी-नयी बाललीला करते हुए उन सबका विनाश कर दिया। असुरमारन भी उनकी बाललीला का एक अंग था, वह भी खेल की एक पद्धति थी।’

व्रज के ठाकुर श्रीकृष्ण

आनन्द-अवतार श्रीकृष्ण में माधुर्य, सौन्दर्य और प्रेम का सुन्दर समावेश हुआ है। उनका धाम व्रजभूमि जो गोलोक के समान है, उसकी मीठी व्रजभाषा, उनकी नित्य किशोर वयस, वस्त्रों में सर्वश्रेष्ठ पीताम्बर, सबसे निराला मोरमुकुट, घुटनों तक शोभायमान वनमाला, पशुओं में सबसे उत्तम पशु गौ, वाद्यों में मधुर वाद्य मुरली, भोज्य-पदार्थों में मधुरतम माखन, वृक्षों में सुन्दर कदम्ब का वृक्ष, सरिताओं में मनोहर यमुनानदी--ये सभी उनके अवतार के सुन्दर योग थे।

करमाबाई की खिचड़ी

करमाबाई अपने गोपाल को अपने हृदयचक्षु (मन की आंखों) से भोग लगाते देखती थी। परमेश्वर गोपाल के रूप में करमाबाई की खिचड़ी का भोग लगाता था। करमाबाई अपने प्रभु के धाम पहुंच गयी पर उस कुटिया में मैया की खिचड़ी का स्वाद उस सर्वेश्वर जगन्नाथ को ऐसा लगा कि वह अपनी आप्तकामता को भूलकर रो-रोकर उसकी खिचड़ी के लिए पुकारता था--‘मैया री! मैं भूखा हूँ, मुझे खिचड़ी दे।’ आज उसकी कुटिया खाली पड़ी है, पर उसमें है एक प्यारी सी, नन्हीं-सी, भोली-सी गोपाल की मूर्ति। लोगों ने कई दिनों तक उस मूर्ति से रोने की आवाज को सुना था।

होली खेलें नन्दलाल

नीलसुन्दर श्रीकृष्ण के श्यामल अंग पर केसरजल की बूंदें ऐसी लग रही थीं मानो सावन की काली बदरिया पर अनेकों चांद उग रहे हों। व्रजांगनाओं ने श्रीकृष्ण की मुरली और पीताम्बर छीन लिया और उनको चुनरी उड़ा दी। श्रीराधा ने श्रीकृष्ण के मस्तक पर कुंकुम की बिन्दी व आंखों में काजल लगा कर मांग भर दी और नाक में नथ पहना दी। गोपियों ने श्रीकृष्ण के गालों पर गुलाल के बड़े-बड़े गुलचप्पे लगा दिए। श्रीकृष्ण ऐसे लग रहे थे मानो कोई नयी नवेली स्त्री हों। गोपियां कहती हैं कि अब इनको यशोदाजी के सामने ताली बजा-बजाकर नचाएंगे।

श्रीकृष्ण के प्रेम दीवाने

सांवले-सलौने श्रीकृष्ण ऊपर से ही मनमोहक नहीं हैं वरन् भीतर भी सुधारस से लबालब हैं। वे रसिक भक्तों के लिए सदा ही मधुरातिमधुर हैं। जिस समय वह मयूरकिरीट और मकराकृत कुण्डल से सजते हैं, पीताम्बर और वैजयन्तीमाला धारण करते हैं तथा ‘बैरन बँसरिया’ को मधुर अधरों पर धरते हैं, उनकी उस रूपमाधुरी पर मोहित हुए न जाने कितने प्रेम दीवाने अपना सब कुछ त्यागकर उन्हीं के होकर रह जाते हैं।

श्रीवल्लभाचार्यजी द्वारा रचित श्रीकृष्ण की नित्य स्तुति ‘श्रीनन्दकुमाराष्टक’

‘नन्दकुमाराष्टक’ महाप्रभु श्रीमद्वल्लभाचार्यजी द्वारा रचित है। इसमें आनन्दकन्द व्रजचन्द की अनेक लीलाओं का मधुर वर्णन है। श्रीनन्दकुमार व्रजराज भक्तों के भय-भंजन हैं, दुष्ट-निकंदन हैं, जन-मन-रंजन हैं। जो वैष्णवभक्त नित्यप्रति प्रेम से इस नन्दकुमाराष्टक का पाठ करते हैं, उन्हें मानसिक शान्ति प्राप्त होती है व किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता तो और देहत्याग के बाद मोक्ष को प्राप्त होते हैं।

सबसे ऊँची प्रेम सगाई

भक्त का प्रेम ईश्वर के लिए महापाश है जिसमें बंधकर भगवान भक्त के पीछे-पीछे घूमते हैं। इस भगवत्प्रेम में न ऊंच है न नीच, न छोटा है न बड़ा। न मन्दिर है न जंगल। न धूप है न चैन। है तो बस प्रेम की पीड़ा; इसे तो बस भोगने में ही सुख है। यह प्रेम भक्त और भगवान दोनों को समान रूप से तड़पाता है।

भगवान शंकर, शुक्राचार्य और मृतसंजीवनी विद्या

दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य, भृगुपुत्र कवि का शुक्राचार्य नाम क्यों पड़ा?, शुक्राचार्य द्वारा कहे गए भगवान शंकर के १०८ नाम, भगवान शंकर द्वारा शुक्राचार्य को मृतसंजीवनी विद्या देना, शुक्रेश्वर शिवलिंग

चौबीस देवताओं के चौबीस गायत्री मन्त्र

देवताओं की गायत्रियां वेदमाता गायत्री की छोटी-छोटी शाखाएं है, जो तभी तक हरी-भरी रहती हैं, जब तक वे मूलवृक्ष के साथ जुड़ी हुई हैं। वृक्ष से अलग कट जाने पर शाखा निष्प्राण हो जाती है, उसी प्रकार अकेले देव गायत्री भी निष्प्राण होती है, उसका जप महागायत्री (गायत्री मन्त्र) के साथ ही करना चाहिए।

श्रीराधा महिमा

जैसे कुम्हार मिट्टी के बिना घड़ा नहीं बना सकता तथा जैसे सुनार सोने के बिना आभूषण तैयार नहीं कर सकता, उसी प्रकार मैं तुम्हारे बिना सृष्टिरचना में समर्थ नहीं हो सकता। तुम सृष्टि की आधारभूता हो और मैं बीजरूप हूँ। जब मैं तुमसे अलग रहता हूँ, तब लोग मुझे ‘कृष्ण’ (काला-कलूटा) कहते हैं और जब तुम साथ हो जाती हो तब वे ही लोग मुझे ‘श्रीकृष्ण’ (शोभाशाली कृष्ण) कहते हैं।