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कैसे शुरु हुई होली मनाने की परम्परा और क्या है इसके...
हिन्दू धर्म में खेत से आए नवीन अन्न को यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परम्परा है । उस अन्न को ‘होला’ कहते हैं । अत: फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को उपले आदि एकत्र कर उसमें यज्ञ की तरह अग्नि स्थापित की जाती है, पूजन करके हवन के चरू के रूप में जौ, गेहूँ, चने की बालियों को आहुति के रूप में होली की ज्वाला में सेकते हैं ।
होली खेलें नन्दलाल
नीलसुन्दर श्रीकृष्ण के श्यामल अंग पर केसरजल की बूंदें ऐसी लग रही थीं मानो सावन की काली बदरिया पर अनेकों चांद उग रहे हों। व्रजांगनाओं ने श्रीकृष्ण की मुरली और पीताम्बर छीन लिया और उनको चुनरी उड़ा दी। श्रीराधा ने श्रीकृष्ण के मस्तक पर कुंकुम की बिन्दी व आंखों में काजल लगा कर मांग भर दी और नाक में नथ पहना दी। गोपियों ने श्रीकृष्ण के गालों पर गुलाल के बड़े-बड़े गुलचप्पे लगा दिए। श्रीकृष्ण ऐसे लग रहे थे मानो कोई नयी नवेली स्त्री हों। गोपियां कहती हैं कि अब इनको यशोदाजी के सामने ताली बजा-बजाकर नचाएंगे।