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भगवान श्रीराधाकृष्ण की बिछुआ लीला
श्रीकृष्ण ने अपनी प्रिया श्रीराधा का चरण-स्पर्श किया । यह देख कर श्रीराधा की सभी सखियां ‘बलिहारी है बलिहार की’—इस तरह का उद् घोष करने लगीं । सारा वातावरण सखियों के परिहास से रसमय हो गया । श्रीकृष्ण ने भी लजाते हुए श्रीराधा के पैर की अंगुली में बिछुआ धारण करा दिया ।
श्रीगिरिराज चालीसा
श्रीराधा ने श्रीकृष्ण से कहा–’प्रभो ! जहां वृन्दावन नहीं है, यमुना नदी नहीं हैं और गोवर्धन पर्वत भी नहीं है, वहां मेरे मन को सुख नहीं मिल सकता है ।’ भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गोलोकधाम से चौरासी कोस भूमि, गोवर्धन पर्वत एवं यमुना नदी को भूतल पर भेजा ।
श्रीराधा-कृष्ण की अलौकिक लीला का साक्षी : श्रीराधाकुण्ड
श्रीराधाकृष्ण की लीला के महत्वपूर्ण स्थल हैं—श्रीराधाकुण्ड व श्रीकृष्णकुण्ड । श्रीरूपगोस्वामी ने कहा है—‘ठाकुर के सभी धाम पवित्र हैं पर उनमें भी वैकुण्ठ से मथुरा श्रेष्ठ है, मथुरा से रासस्थली वृन्दावन श्रेष्ठ है, उससे भी श्रेष्ठ गोवर्धन है लेकिन उसमें भी श्रीराधाकुण्ड अपने माधुर्य के कारण सर्वश्रेष्ठ है ।’
श्रीकृष्ण द्वारा गिरिगोवर्धन-पूजन महोत्सव
देवराज इन्द्र परब्रह्म परमात्मा को ‘मनुष्य’, उनके चिन्मय तत्वों को ‘जड’ और भगवान के लीला सहचरों को ‘सामान्य’ मान बैठे थे। इन्द्र की भोगवादी संस्कृति ने ग्वालों को भीरु बना दिया, तब श्रीकृष्ण ने उनमें आत्मचेतना का दिव्यमन्त्र फूंक कर उन्हें स्वयं पर भरोसा करने वाला आत्मविश्वासी बनाया। गोपालक व लोक संस्कृति का पुनर्जागरण कर गिरिराज गोवर्धन की पूजा का विधान बताया।