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युगलस्वरूप श्रीराधाकृष्ण की कृपा की प्राप्ति कैसे हो ?
गोपी-प्रेम बड़ा ही पवित्र है, इसमें अपना सर्वस्व प्रियतम श्रीकृष्ण के चरणों में न्यौछावर करना पड़ता है । गोपी भाव के साधक को न तो मोक्ष की इच्छा होती है और न ही नरक का भय । उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य प्रियतम श्रीकृष्ण को प्रिय लगने वाले कार्य करना हो जाता है ।
श्रीराधा-कृष्ण की अलौकिक लीला का साक्षी : श्रीराधाकुण्ड
श्रीराधाकृष्ण की लीला के महत्वपूर्ण स्थल हैं—श्रीराधाकुण्ड व श्रीकृष्णकुण्ड । श्रीरूपगोस्वामी ने कहा है—‘ठाकुर के सभी धाम पवित्र हैं पर उनमें भी वैकुण्ठ से मथुरा श्रेष्ठ है, मथुरा से रासस्थली वृन्दावन श्रेष्ठ है, उससे भी श्रेष्ठ गोवर्धन है लेकिन उसमें भी श्रीराधाकुण्ड अपने माधुर्य के कारण सर्वश्रेष्ठ है ।’
बालब्रह्मचारी श्रीकृष्ण
अनेक प्रकार के रास रचाने व लीला करने वाले श्रीकृष्ण बालब्रह्मचारी और थोड़ी देर पहले ही पचासों थाल भोजन आत्मसात् कर जाने वाले दुर्वासा ऋषि सदा के निराहारी! यह कैसा आश्चर्य?
रसराज भगवान श्रीकृष्ण और महाभागा गोपियां
वन्दे नन्दव्रजस्त्रीणां पादरेणुमभीक्ष्णश:।
यासां हरिकथोद्गीतं पुनाति भुवनत्रयम्।। (श्रीमद्भागवत १०।४७।६३)
अर्थात्--हम उन गोकुल की व्रजांगनाओं की चरणरेणु को बार-बार श्रद्धासहित सिर पर चढ़ाते हैं, जिनकी भगवत्सम्बन्धिनी कथाएं...
श्रीकृष्णावतार के समय देवी-देवताओं का पृथ्वी पर विभिन्न रूपों में जन्म
इस प्रकार लीला-मंच तैयार हो गया, मंच-लीला की व्यवस्था करने वाले रचनाकार, निर्देशक एवं समेटने वाले भी तैयार हो गए। इस मंच पर पधारकर, विभिन्न रूपों में उपस्थित होकर अपनी-अपनी भूमिका निभाने वाले पात्र भी तैयार हो गए। काल, कर्म, गुण एवं स्वभाव आदि की रस्सी में पिरोकर भगवान श्रीकृष्ण ने इन सबकी नकेल अपने हाथ में रखी। यह नटवर नागर श्रीकृष्ण एक विचित्र खिलाड़ी हैं। कभी तो मात्र दर्शक बनकर देखते हैं, कभी स्वयं भी वह लीला में कूद पड़ते हैं और खेलने लगते हैं।