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गौ महिमा
हरे हरे तिनकों पर अमृत-घट छलकाती गौ माता,जब-जब कृष्ण बजाते मुरली लाड़ लड़ाती गौ माता।तुम्ही धर्म हो, तुम्ही सत्य हो, पृथ्वी-सा सब...
भगवान श्रीकृष्ण की गो-सेवा
गोकुलेश गोविन्द प्रभु, त्रिभुवन के प्रतिपाल।गो-गोवर्धन-हेतु हरि, आपु बने गोपाल।।द्वापर में दुइ काज-हित, लियौ प्रभुहि अवतार।इक गो-सेवा, दूसरौ भूतल कौं उद्धार।। (श्रीराधाकृष्णजी...
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गौओं की जननी सुरभी की प्राकट्य लीला
गौ गोलोक की एक अमूल्य निधि है, जिसकी रचना भगवान ने मनुष्यों के कल्याणार्थ आशीर्वाद रूप से की है। अत: इस पृथ्वी पर गोमाता मनुष्यों के लिए भगवान का प्रसाद है। भगवान के प्रसादस्वरूप अमृतरूपी गोदुग्ध का पान कर मानव ही नहीं अपितु देवगण भी तृप्त होते हैं। इसीलिए गोदुग्ध को ‘अमृत’ कहा जाता है। गौएं विकाररहित दिव्य अमृत धारण करती हैं और दुहने पर अमृत ही देती हैं। वे अमृत का खजाना हैं। सभी देवता गोमाता के अमृतरूपी गोदुग्ध का पान करने के लिए गोमाता के शरीर में सदैव निवास करते हैं। ऋग्वेद में गौ को ‘अदिति’ कहा गया है। ‘दिति’ नाम नाश का है और ‘अदिति’ अविनाशी अमृतत्व का नाम है। अत: गौ को अदिति कहकर वेद ने अमृतत्व का प्रतीक बतलाया है।