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गरुड़, सुदर्शन चक्र और श्रीकृष्ण की पटरानियों का गर्व-हरण
जहां-जहां अभिमान है, वहां-वहां भगवान की विस्मृति हो जाती है । इसलिए भक्ति का पहला लक्षण है दैन्य अर्थात् अपने को सर्वथा अभावग्रस्त, अकिंचन पाना । भगवान ऐसे ही अकिंचन भक्त के कंधे पर हाथ रखे रहते हैं । भगवान अहंकार को शीघ्र ही मिटाकर भक्त का हृदय निर्मल कर देते हैं ।
भगवान विष्णु ने गरुड़ को अपना वाहन क्यों बनाया ?
गरुड़जी भगवान विष्णु के परिकर ही नहीं दास, सखा, वाहन, आसन, ध्वजा, वितान (छतरी, canopy) एवं व्यजन (पंखा) के रूप में जाने जाते हैं । जानें, गरुड़जी को सुपर्ण क्यों कहा जाता है ?