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मानव शरीर एक देवालय है
परब्रह्म परमात्मा ने जब विश्व की रचना की, तब वैसा ही मनुष्य का शरीर भी बनाया—‘यद् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे’ । वैसे तो परमात्मा ने अपनी माया से चौरासी हजार योनियों की रचना की, परन्तु उन्हें संतोष न हुआ । जब उन्होंने मनुष्य शरीर की रचना की को वे बहुत प्रसन्न हुए; क्योंकि मनुष्य ऐसी बुद्धि से युक्त है जिससे वह परमात्मा का साक्षात्कार कर सकता है ।