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भक्तों की मुक्ति किस प्रकार की होती है ?
वैष्णव मुक्ति इसलिए स्वीकार नहीं करते; क्योंकि उन्हें भगवान की सेवा में आनंद, रस आता है । वैष्णवों को जो मुक्ति मिलती है, उसे ‘भागवती मुक्ति’ कहते हैं, जिसमें भगवान के धाम में वे अति दिव्य, अप्राकृत रूप धारण कर नित्य भगवान की सेवा करते हैं, उनकी लीलाओं में सम्मिलित होते हैं । स्वयं मुक्ति भी अपनी मुक्ति (मोक्ष) के लिए उस ब्रज की रज को जहां गोपीजन निवास करते थे, अपने मस्तक पर धारण करने के लिए लालायित रहती है ।