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परमात्मा की प्राप्ति में भाव ही प्रधान है
बालगोपाल बोले—‘तुमने मेरा अर्चन किया ही कब ? तुम तो जड़ मूर्ति का पूजन करते रहे । तुमने मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा तो की पर उसमें मेरी उपस्थिति का भाव तुम्हें कभी नहीं आया । आज जब तुम्हें उस जड़ मूर्ति में मेरी उपस्थिति का आभास हुआ कि मैं मां को अर्पित किए गए हवन और भोग की गन्ध ग्रहण कर रहा हूँ तो मैं तुम्हारे सामने साक्षात् प्रत्यक्ष हो गया ।’