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श्रीकृष्ण: शरणं मम
जिस प्रकार 'हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे' नाम महामन्त्र के कीर्तन का प्रचार श्रीचैतन्य महाप्रभु के आदेश के अनुसार बंगदेश में शुरू हुआ और आज वह सारे संसार को पवित्र कर रहा है, उसी प्रकार 'श्रीकृष्ण: शरणं मम' अष्टाक्षर महामन्त्र 'पुष्टि सम्प्रदाय' में नाममन्त्र संज्ञा से सुप्रसिद्ध है। यह अखण्डभूमण्डलाचार्यवर्य श्रीवल्लभाचार्यजी द्वारा प्रकटित है।
भगवान श्रीकृष्ण का नामकरण संस्कार
यदुवंशियों के कुलपुरोहित थे श्रीगर्गाचार्यजी। वह ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान थे। वसुदेवजी की प्रेरणा से वह एक दिन गोकुल में नंदबाबा के घर आए। गर्गाचार्यजी ने कहा--'नंदजी, यह जो तुम्हारा साँवला सलौना बालक है, यह युग-युग में रंग परिवर्तित करता है। सत्ययुग में श्वेत वर्ण का, त्रेतायुग में रक्त वर्ण था। परन्तु इस समय द्वापरयुग में यह मेघश्याम रूप धारण करके आया है अत: इसका नाम 'कृष्ण' होगा।'
बालकृष्ण का अन्नप्राशन महोत्सव
माघमास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथी की प्रभात वेला है। आज बालकृष्ण पाँच महीने और इक्कीस दिन के हो गये हैं। माँ यशोदा तो आज सारी रात जागी हुयी हैं। वह बालकृष्ण के अन्नप्राशन महोत्सव की सुखमय कल्पना में सारी रात विभोर थीं। सूर्योदय में अभी बिलम्व है, किन्तु गोपसुन्दरियों के दल-के-दल नँद-भवन में एकत्रित होने लगे हैं। छोटे शिशुओं को गोद में लेकर, थोड़े बड़े पुत्रों की अँगुली पकड़े, मंगलगीत गाते हुए गोपसुन्दरियाँ अपनी किंकणी के नूपुरों से सारे वातावरण को झंकारित करती हुयी नँद-भवन की ओर चली जा रही हैं। मन में उमंग लिये कि हम ही सबसे पहले बालकृष्ण के दर्शन कर लें। गोपमण्डली भी विविध वेशभूषा व अलंकारों से सज्जित होकर नँद-भवन की ओर चल पड़े। उसी समय माँ यशोदा अपने पुत्र को लेकर आँगन में आती हैं गोपियों की अपार भीड़ उन्हें चारों ओर से घेर लेती है।
श्रीकृष्ण की पैर का अंगूठा पीने की लीला
बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को पीने के पहले यह सोचते हैं कि क्या कारण है कि बड़े-बड़े ऋषि मुनि अमृतरस को छोड़कर मेरे चरणकमलों के रस का पान करते हैं। क्या यह अमृतरस से भी ज्यादा स्वादिष्ट है? इसी बात की परीक्षा करने के लिये बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को पीने की लीला किया करते थे।