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भगवान श्रीकृष्ण के व्रजसखा (गोपकुमार) एवं गोपियाँ
भक्ति की प्रवर्तिका गोपियां ही हैं। श्रीकृष्णदर्शन की लालसा ही गोपी है। गोपी कोई स्त्री नहीं है, गोपी कोई पुरुष नहीं है। श्रीमद्भागवत में ‘गोपी’ शब्द का अर्थ परमात्मा को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा बताया गया है।
बालकृष्ण की विभिन्न बाललीलाएँ और सूरदासजी द्वारा उनका वर्णन
सूरदासजी उच्चकोटि के संत होने के साथ-साथ उच्चकोटि के कवि थे। इन्हें वात्सल्य और श्रृंगार रस का सम्राट कहा जाता है। सूरदासजी अँधे थे परन्तु इन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त थी। जैसा भगवान का स्वरूप होता था, वे उसे अपनी बंद आँखों से वैसा ही वर्णन कर देते थे।