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प्रेम की आंख और द्वेष की आंख

जितना ही मनुष्य दूसरों से प्रेम करेगा, उनसे जुड़ता जाएगा; उतना ही वह सुखी रहेगा । जितना ही दूसरों को द्वेष-दृष्टि से देखोगे, उनसे कटते जाओगे उतने ही दु:खी होओगे । जुड़ना ही आनन्द है और कटना ही दु:ख है मित्रता या प्रेम की आंख से पृथ्वी स्वर्ग बनती है और द्वेष की आंख से नरक का जन्म होता है ।

जब भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा को दिखाया अपना मायाजाल

भगवान की माया क्या है ? संतों ने माया को ‘नर्तकी’ कहा है । इस नर्तकी माया के जाल से बचना है तो ‘नर्तकी’ का उल्टा कर दो । जो शब्द बनेगा वह है ‘कीर्तन’ अर्थात् जो भगवान का कीर्तन व नाम-स्मरण करता है, उसे माया रुलाती नहीं है ।