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परमात्मा के वांग्मय-स्वरूप वेद
वेद सृष्टिक्रम की प्रथम वाणी व साक्षात् अनन्तकोटि ब्रह्माण्डनायक भगवान के वांग्मय-स्वरूप हैं। वेद शब्दमय ईश्वरीय आदेश हैं। वेद शुद्ध ज्ञान का नाम है, जो परमात्मा से प्रकट हुआ है। जैसे माता-पिता अपनी संतान को शिक्षा देते हैं, वैसे ही जगत् के माता-पिता परमात्मा सृष्टि के आदि में मनुष्यों को वैदिक शिक्षा प्रदान करते हैं, जिससे वे भली-भांति अपनी जीवन-यात्रा पूर्ण कर सकें।
परब्रह्म की सृष्टिकामना और गोलोक का प्राकट्य
अव्यक्त से व्यक्त होना, एक से अनेक होना, निराकार से साकार होना, सूक्ष्म का स्थूल होना सृष्टि है। वे स्वयं ही अपने-आपकी, अपने-आप में, अपने-आप से ही सृष्टि करते हैं। वे ही स्रष्टा, सृज्य और सृष्टि हैं। उनके अतिरिक्त और कोई वस्तु नहीं है। सृष्टि को अनादि माना जाता है। सृष्टि के बाद प्रलय और प्रलय के बाद सृष्टि--यह परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है। विभिन्न कल्पों में सृष्टि वर्णन में भी भिन्नता पाई जाती है। कभी आकाश से, कभी तेज से, कभी जल से और कभी प्रकृति से सृष्टि की उत्पत्ति होती है। रजोगुण की प्रधानता से सृष्टि होती है और तमोगुण की प्रधानता से प्रलय होता है।