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श्रीराधा महिमा

जैसे कुम्हार मिट्टी के बिना घड़ा नहीं बना सकता तथा जैसे सुनार सोने के बिना आभूषण तैयार नहीं कर सकता, उसी प्रकार मैं तुम्हारे बिना सृष्टिरचना में समर्थ नहीं हो सकता। तुम सृष्टि की आधारभूता हो और मैं बीजरूप हूँ। जब मैं तुमसे अलग रहता हूँ, तब लोग मुझे ‘कृष्ण’ (काला-कलूटा) कहते हैं और जब तुम साथ हो जाती हो तब वे ही लोग मुझे ‘श्रीकृष्ण’ (शोभाशाली कृष्ण) कहते हैं।

श्रीराधा कृष्ण के साक्षात् दर्शन कराने वाला ‘श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तवराज’

श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र के भक्तिपूर्वक पाठ से श्रीराधाजी प्रकट होकर प्रसन्नतापूर्वक वरदान देती हैं अथवा अपने चरणों का महावर (जावक) भक्त के मस्तक पर लगा देती हैं। वरदान में केवल ‘अपनी प्रिय वस्तु दो’ यही मांगना चाहिए। तब भगवान श्रीकृष्ण प्रकट होकर दर्शन देते है और प्रसन्न होकर श्रीव्रजराजकुमार नित्य लीलाओं में प्रवेश प्रदान करते हैं। इससे बढ़कर वैष्णवों के लिए कोई भी वस्तु नहीं है।

श्रीराधा का रूप-माधुर्य

‘मेरी उन श्रीराधा के प्रेमराज्य में मलिन काम-भोग की लेशमात्र कल्पना भी नहीं है। रागरहित श्रृंगार है, मोहरहित पवित्र प्रेम है, निज-सुख-इच्छा से रहित ममता है, स्वादरहित सब खान-पान है, अभिमान से रहित अति मान है। मेरी वे साध्यस्वरूपा श्रीराधा नित्य तृप्त हैं और श्रीमाधव की पवित्रतम परमाराध्य हैं।’

परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण से सृष्टि का आरम्भ

यह अनंत ब्रह्माण्ड परब्रह्म परमात्मा का खेल है। जैसे बालक मिट्टी के घरोंदे बनाता है, कुछ समय उसमें रहने का अभिनय करता है और अंत मे उसे ध्वस्त कर चल देता है। उसी प्रकार परब्रह्म भी इस अनन्त सृष्टि की रचना करता है, उसका पालन करता है और अंत में उसका संहारकर अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है। यही उसकी क्रीडा है, यही उसका अभिनय है, यही उसका मनोविनोद है, यही उसकी निर्गुण-लीला है जिसमें हम उसकी लीला को तो देखते हैं, परन्तु उस लीलाकर्ता को नहीं देख पाते।

भगवान श्रीकृष्ण का गोलोकधाम

गोलोक ब्रह्माण्ड से बाहर और तीनों लोकों से ऊपर है। उससे ऊपर दूसरा कोई लोक नहीं है। ऊपर सब कुछ शून्य ही है। यह भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा से निर्मित है। उसका कोई बाह्य आधार नहीं है। अप्राकृत आकाश में स्थित इस श्रेष्ठ धाम को परमात्मा श्रीकृष्ण अपनी योगशक्ति से (बिना आधार के) वायु रूप से धारण करते हैं। वहां न काल की दाल गलती है और न ही माया का कोई वश चलता है फिर माया के बाल-बच्चे तो जा ही कैसे सकते हैं। यह केवल मंगल का धाम है जो समस्त लोकों में श्रेष्ठतम है।

श्रीराधा का गोलोकधाम से व्रज में अवतरण : कुछ अनछुए पहलू

भगवान श्रीकृष्ण ने गोपों और गोपियों को बुलाकर कहा--’गोपों और गोपियो ! तुम सब-के-सब नन्दरायजी का जो उत्कृष्ट व्रज है, वहां गोपों के घर-घर में जन्म लो। राधिके ! तुम भी वृषभानु के घर अवतार लो। वृषभानु की पत्नी का नाम कलावती है। वे सुबल की पुत्री हैं और लक्ष्मी के अंश से प्रकट हुई हैं। वास्तव में वे पितरों की मानसी कन्या हैं। पूर्वकाल में दुर्वासा के शाप से उनका व्रजमण्डल में गोप के घर में जन्म हुआ है। तुम उन्हीं कलावती की पुत्री होकर जन्म ग्रहण करो।

श्रीकृष्णप्राणेश्वरी श्रीराधा

श्रीराधा कौन हैं? श्रीराधा हैं--श्रीकृष्ण का सुख। श्रीराधा हैं--श्रीकृष्ण का आनन्द। भगवान का आनन्दस्वरूप ही श्रीराधा के रूप में अभिव्यक्त है। श्रीराधा न हों तो श्रीकृष्ण के आनन्दरूप की सिद्धि ही न हो। श्रीराधा चिदानन्द परमात्मा की मौज हैं, अन्तर का आह्लाद हैं, उसी आह्लाद की प्रकटरूपा श्रीराधा हैं।

तुलसीसेवा, श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए श्रीराधाजी द्वारा तुलसीसेवा-व्रत

पुष्पों में अथवा देवियों में किसी से भी इनकी तुलना नहीं हो सकी इसलिए उन सबमें पवित्ररूपा इनको तुलसी कहा गया। तुलसी लक्ष्मीजी (श्रीदेवी) के समान भगवान नारायण की प्रिया और नित्य सहचरी हैं; इसलिए परम पवित्र और सम्पूर्ण जगत के लिए पूजनीया हैं। अत: वे विष्णुप्रिया, विष्णुवल्लभा, विष्णुकान्ता तथा केशवप्रिया आदि नामों से जानी जाती हैं। भगवान श्रीहरि की भक्ति और मुक्ति प्रदान करना इनका स्वभाव है।

श्रीकृष्ण के मोरपंख व गुँजामाला धारण करने का रहस्य

बर्हापीडं नटवरवपु: कर्णयो: कर्णिकारं बिभ्रद् वास: कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम्। रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन् गोपवृन्दै- र्वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्ति:।। प्रस्तुत श्लोक में श्रीकृष्ण की अद्भुत मोहिनी शोभा का वर्णन...

श्रीराधा कृष्ण झूलन लीला

भारतीय संस्कृति में श्रावनमास में झूला झूलने का रिवाज अनादिकाल से चला आ रहा है क्योंकि उस समय प्रकृति भी अपनी सुन्दरता की चरम...