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जिन नैनन श्रीकृष्ण बसे, वहां कोई कैसे समाय
श्रीराधा की पायल सूरदासजी के हाथ में आ गई । श्रीराधा के पायल मांगने पर सूरदासजी ने कहा पहले मैं तुम्हें देख लूं, फिर पायल दूंगा । दृष्टि मिलने पर सूरदासजी ने श्रीराधाकृष्ण के दर्शन किए । जब उन्होंने कुछ मांगने को कहा को सूरदासजी ने कहा—‘जिन आंखों से मैंने आपको देखा, उनसे मैं संसार को नहीं देखना चाहता । मेरी आंखें पुन: फूट जायँ ।’
व्रज में श्रीराधा का जन्मोत्सव
व्रजराज नन्द के घर यदि श्रीकृष्ण प्रकट हुए हैं तो गोपराज वृषभानु के घर श्रीराधारानी का प्राकट्य निश्चित है क्योंकि आह्लादिनी के बिना आह्लाद आता ही नहीं है।
मूलप्रकृति श्रीराधा का सम्पूर्ण परिचय
व्रज में कौन-से चार स्थानों पर ‘राधे-राधे’ ही बोला जाता है?
श्रीराधा के चरणचिह्न और उनका भाव
श्रीकृष्ण-स्वामिनी श्रीराधा ने अपने चरणकमलों में सुख देने वाले 19 चिन्हों को धारण किया है।
श्रावणमास में हिंडोले झूलत श्यामा-श्याम
हरियाली तीज पर श्रीराधाकृष्ण की अत्यन्त मनोहर हिंडोला लीला और उसका भाव।
भगवान श्रीकृष्ण की लिलहारी लीला
जब श्रीकृष्ण ने सुना कि श्रीराधा अपने रोम-रोम पर उनका नाम लिखवाना चाहती हैं, तो वे खुशी से बौरा गए। उन्हें अपनी सुध नहीं रही। वे खड़े होकर जोर-जोर से नाचने और उछलने लगे और भूल गए कि वो वृषभानुमहल में एक लालिहारण के वेश में श्रीराधा के सामने ही बैठे हैं।
क्यों मधुर है श्रीकृष्ण का रास-नृत्य ?
‘रास’ का सम्बन्ध भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों से है। रास वृन्दावन का वास्तविक नृत्य है। श्रीकृष्ण अकेले रास नहीं कर सकते। रास की आधार हैं श्रीराधा; इसलिए उन्होंने अपनी आह्लादिनी शक्ति श्रीराधा के साहचर्य से रास रचाया, रस बरसाया, रस प्राप्त किया और रस प्रदान किया तथा ‘रासबिहारीलाल’ कहलाए। भगवान श्रीकृष्ण की अन्तरंग आह्लादिनी शक्ति श्रीराधाजी और उनकी निजस्वरूपा गोपबालाओं के साथ होने वाली कन्हैया की रस एवं माधुर्य से ओत-प्रोत संगीतमय लीला का नाम ‘रास’ है।
श्रीकृष्ण का चतुर्भुजरूप और श्रीराधा
श्रीराधा और गोपांगनाएं नन्दनन्दन श्रीकृष्ण की मधुर कान्ताभाव से सेवा-आराधना करती हैं। न वे श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य को जानती हैं, न मानती हैं, न उसे देखने की कभी उनमें इच्छा ही जागती है। वरन् श्रीकृष्ण के चतुर्भुजरूप को देखकर वे डरकर संकोच में पड़ जाती हैं। उन्हें जहां जरा भी श्रीकृष्ण का ऐश्वर्यरूप दिखायी दिया, वहीं वे अपने ही प्रियतम श्यामसुन्दर को श्यामसुन्दर न मानकर कुछ अन्य मानने लगती हैं। व्रज में श्रीकृष्ण की भगवत्ता या उनके परमेश्वररूप की कोई पूछ नहीं है।
श्रीकृष्ण के रोग की अनोखी दवा
’उपाय यह है कि कोई सती स्त्री श्रीकृष्ण के केशों से बनी इस डोर पर चलती हुई यमुनाजी के उस पार तीन बार जाए और लौट कर आए; फिर इस छिद्रयुक्त कलसी में यमुनाजल लाकर श्रीकृष्ण पर छिड़के तो उनकी चेतना वापिस आ जाएगी।’ यशोदाजी ने अपना माथा पकड़ लिया--’क्या व्रज में ऐसी कोई सती है जो ऐसा साहस कर सके!’
श्रीराधा : ध्यान, मन्त्र, गायत्री, स्तोत्र एवं आरती
सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने गोलोक में रासमण्डल में मूलप्रकृति श्रीराधा के उपदेश करने पर इस मन्त्र का जप किया था। फिर उन्होंने विष्णु को, विष्णु ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने धर्म को और धर्म ने भगवान नारायण को इसका उपदेश किया। इस प्रकार यह परम्परा चली आयी। श्रीराधा-मन्त्र कल्पवृक्ष के समान साधक की मनोकामना पूर्ति करता है।