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प्रभु श्रीनाथजी के अनन्य सखा श्रीगोविन्दस्वामी

कलियुग में सच्चिदानन्द भगवान श्रीकृष्ण ही गिरिगोवर्धन पर ‘देवदमन श्रीनाथजी’ रूप में प्रकट हुए हैं। गोविन्दस्वामी को भगवान श्रीकृष्ण के सखा श्रीदामा का अवतार माना जाता है। श्रीनाथजी उनके साथ हंसते-खेलते थे। देखने वालों को प्रत्यक्ष आंखों से कुछ नहीं दिखलायी पड़ता था पर उनकी भगवान के साथ मित्रता के गवाह थे--गुंसाईं श्रीविट्ठलनाथजी। गोविन्दस्वामी अपने गुरु गुंसाईंजी से अपने और श्रीनाथजी के प्रेम में झगड़ने और सुलह-सफाई के किस्से बिना किसी संकोच के कह दिया करते थे।

व्रज एवं व्रजरज

श्रीराधामाधव एवं उनके सखा एवं गोपियों की नित्य लीलाओं को जहां आधार प्राप्त हुआ उस धाम को रसिकों, भक्तों ने व्रजधाम या व्रजमंडल कहा है। पाँच हजार वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीराधाजी, ललिता, विशाखा आदि अष्टसखियों, गोप-गोपियों, श्रीयमुनाजी, और पवित्र गौओं के साथ इस दिव्य भूमि में विचरण किया था। यही गोकुल, नन्दगांव व वृन्दावन है, जहां सर्वत्र कण-कण में श्रीकृष्ण के स्वरूप का दर्शन पाकर भाव-विभोर हुए ब्रह्माजी अपने नयनाश्रुओं से यहां के रजकणों (धूल) का अभिषेक करने के लिए बाध्य हुए थे।

भगवान श्रीकृष्ण के चरण-कमल

भगवान के चरण-चिह्नों का परिचय एवं पुष्टिमार्ग के आराध्य श्रीनाथजी के चरण-कमल भगवान के चरण-कमल बड़े ही दुर्लभ हैं और सेवा के लिए उनकी प्राप्ति होना और भी कठिन है। लक्ष्मीजी भगवान के चरण-कमलों को ही भजती हैं अत: नवधा भक्ति में ‘पाद सेवन’ भक्ति लक्ष्मीजी को सिद्ध है।