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भगवान श्रीकृष्ण के व्रजसखा (गोपकुमार) एवं गोपियाँ
भक्ति की प्रवर्तिका गोपियां ही हैं। श्रीकृष्णदर्शन की लालसा ही गोपी है। गोपी कोई स्त्री नहीं है, गोपी कोई पुरुष नहीं है। श्रीमद्भागवत में ‘गोपी’ शब्द का अर्थ परमात्मा को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा बताया गया है।