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भगवान श्रीकृष्ण की वंशी के हैं रूप अनेक
गौचारण और रास के समय श्रीकृष्ण धारण करते हैं अलग प्रकार की बाँसुरी
भगवान श्रीकृष्ण का व्रज में अद्भुत माधुर्य एवं ऐश्वर्य
व्रज में श्रीकृष्ण की न तो कोई सेना थी, और न ही कोई अस्त्र-शस्त्र। न ही उनका उग्ररूप कभी प्रकट हुआ और न ही कोई युद्ध लम्बा चला। राक्षस आया और खेलते-खेलते दो घड़ी में ही कन्हैया ने उसका काम-तमाम कर दिया । इसीलिए ब्रह्माण्डपुराण में नारदजी ने कहा है--‘चक्रधारी नारायण चक्र धारण करके भी जिन असुरों का विनाश सहज में नहीं कर सकते, श्रीकृष्ण ने नयी-नयी बाललीला करते हुए उन सबका विनाश कर दिया। असुरमारन भी उनकी बाललीला का एक अंग था, वह भी खेल की एक पद्धति थी।’
भगवान श्रीकृष्ण के वेणुनाद का माधुर्य
वंशी की इस उन्मादक स्वर-लहरी के स्पर्श से अपने को कौन नहीं भूल जाता? इसी के द्वारा सारे जगत का चुम्बन कर श्रीकृष्ण एक गुदगुदी उत्पन्न किया करते हैं, प्राणियों के सोये हुए प्रेम को जगाया करते हैं। श्रीकृष्ण जब वंशी में रस भरते हैं, उस समय ऊपर आकाश का दृश्य भी देखने-योग्य होता है। यह ध्वनि केवल वृन्दावन को ही झंकृत करके नहीं रह गई अपितु अंतरिक्ष को भेदते हुए इसने वैकुण्ठ को आत्मसात कर लिया और पाताल को प्रकम्पित करती हुई नीचे चली गई। समस्त ब्रह्माण्ड का भेदन करती हुई यह वेणुध्वनि सब जगह व्याप्त हो गई।