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भगवान श्रीकृष्ण की नौका विहार लीला

जिस प्रकार भगवान अनंत हैं, उसी प्रकार उनकी लीला भी अनंत हैं। भगवान की अनंतता और उनकी लीलाओं की विचित्रता अकथनीय है। उनकी प्रत्येक लीला का गोपनीय रहस्य है जिसे संसार नहीं समझ सकता। ऐसी ही उनकी एक लीला है नौका विहार लीला।

बालकृष्ण का अन्नप्राशन महोत्सव

माघमास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथी की प्रभात वेला है। आज बालकृष्ण पाँच महीने और इक्कीस दिन के हो गये हैं। माँ यशोदा तो आज सारी रात जागी हुयी हैं। वह बालकृष्ण के अन्नप्राशन महोत्सव की सुखमय कल्पना में सारी रात विभोर थीं। सूर्योदय में अभी बिलम्व है, किन्तु गोपसुन्दरियों के दल-के-दल नँद-भवन में एकत्रित होने लगे हैं। छोटे शिशुओं को गोद में लेकर, थोड़े बड़े पुत्रों की अँगुली पकड़े, मंगलगीत गाते हुए गोपसुन्दरियाँ अपनी किंकणी के नूपुरों से सारे वातावरण को झंकारित करती हुयी नँद-भवन की ओर चली जा रही हैं। मन में उमंग लिये कि हम ही सबसे पहले बालकृष्ण के दर्शन कर लें। गोपमण्डली भी विविध वेशभूषा व अलंकारों से सज्जित होकर नँद-भवन की ओर चल पड़े। उसी समय माँ यशोदा अपने पुत्र को लेकर आँगन में आती हैं गोपियों की अपार भीड़ उन्हें चारों ओर से घेर लेती है।

बालकृष्ण की विभिन्न बाललीलाएँ और सूरदासजी द्वारा उनका वर्णन

सूरदासजी उच्चकोटि के संत होने के साथ-साथ उच्चकोटि के कवि थे। इन्हें वात्सल्य और श्रृंगार रस का सम्राट कहा जाता है। सूरदासजी अँधे थे परन्तु इन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त थी। जैसा भगवान का स्वरूप होता था, वे उसे अपनी बंद आँखों से वैसा ही वर्णन कर देते थे।

श्रीकृष्ण की पैर का अंगूठा पीने की लीला

बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को पीने के पहले यह सोचते हैं कि क्या कारण है कि बड़े-बड़े ऋषि मुनि अमृतरस को छोड़कर मेरे चरणकमलों के रस का पान करते हैं। क्या यह अमृतरस से भी ज्यादा स्वादिष्ट है? इसी बात की परीक्षा करने के लिये बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को पीने की लीला किया करते थे।

मैया मेरी, चन्द्र खिलौना लैहौं

श्रीकृष्ण की बालहठ लीला मैया मेरी, चन्द्र खिलौना लैहौं, धौरी को पय पान न करिहौ, बेनी सिर न गुथेहौं। मोतिन माल न धरिहौं उर पर, झंगुली कंठ...