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भगवान शिव और पार्वती के परिहास में छिपा जगत का कल्याण
’पार्वती! तुम अपने पिता हिमाचल की तरह पत्थर-दिल प्रतीत होती हो। तुम्हारी चाल में भी पहाड़ी मार्गों की तरह कुटिलता है। ये सब गुण तुम्हारे शरीर में हिमाचल से ही आए प्रतीत होते हैं।’ शिवजी के इन वचनों ने पार्वतीजी की क्रोधाग्नि में घी का काम किया। उनके होंठ फड़कने लगे, शरीर कांपने लगा।