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पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण
ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त समस्त चराचर जगत--जो प्राकृतिक सृष्टि है, वह सब नश्वर है । तीनों लोकों के ऊपर जो गोलोकधाम है, वह नित्य है । गोलोकपति परमात्मा श्रीकृष्ण ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों के एकमात्र ईश्वर और पूर्ण ब्रह्म हैं, जो प्रकृति से परे हैं । ब्रह्मा, शंकर, महाविराट् और क्षुद्रविराट्--सभी उन परमब्रह्म परमात्मा का अंश हैं ।
परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण से सृष्टि का आरम्भ
यह अनंत ब्रह्माण्ड परब्रह्म परमात्मा का खेल है। जैसे बालक मिट्टी के घरोंदे बनाता है, कुछ समय उसमें रहने का अभिनय करता है और अंत मे उसे ध्वस्त कर चल देता है। उसी प्रकार परब्रह्म भी इस अनन्त सृष्टि की रचना करता है, उसका पालन करता है और अंत में उसका संहारकर अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है। यही उसकी क्रीडा है, यही उसका अभिनय है, यही उसका मनोविनोद है, यही उसकी निर्गुण-लीला है जिसमें हम उसकी लीला को तो देखते हैं, परन्तु उस लीलाकर्ता को नहीं देख पाते।