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व्रज में परमात्मा श्रीकृष्ण के अटपटे नाम

जानें श्रीकृष्ण के व्रज में मधुररस से भरे विभिन्न नाम कौन-से हैं

श्रीबालकृष्ण की मानसी सेवा-पूजा विधि

ईश्वर के लिए हमारे मन में जो उत्तम भाव उठते लगते हैं वही पुष्प हैं। इन्हीं सब भावों को बार-बार भगवान के साथ जोड़ना, इसी को पुष्पांजलि कहते हैं। यही सब करते-करते भगवान में समा जाना--मानो आनन्द के समुद्र में डूब रहे हों। यही डूबना-उतरना भगवान की मानसी-सेवा-पूजा है।

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गौओं की जननी सुरभी की प्राकट्य लीला

गौ गोलोक की एक अमूल्य निधि है, जिसकी रचना भगवान ने मनुष्यों के कल्याणार्थ आशीर्वाद रूप से की है। अत: इस पृथ्वी पर गोमाता मनुष्यों के लिए भगवान का प्रसाद है। भगवान के प्रसादस्वरूप अमृतरूपी गोदुग्ध का पान कर मानव ही नहीं अपितु देवगण भी तृप्त होते हैं। इसीलिए गोदुग्ध को ‘अमृत’ कहा जाता है। गौएं विकाररहित दिव्य अमृत धारण करती हैं और दुहने पर अमृत ही देती हैं। वे अमृत का खजाना हैं। सभी देवता गोमाता के अमृतरूपी गोदुग्ध का पान करने के लिए गोमाता के शरीर में सदैव निवास करते हैं। ऋग्वेद में गौ को ‘अदिति’ कहा गया है। ‘दिति’ नाम नाश का है और ‘अदिति’ अविनाशी अमृतत्व का नाम है। अत: गौ को अदिति कहकर वेद ने अमृतत्व का प्रतीक बतलाया है।