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श्रीकृष्ण की व्रज में आनन्द बांटने की बाललीला
भगवान श्रीकृष्ण व्रज के सुख की टोकरी सिर पर लेकर ढोते हैं और व्रज की गलियों में कहते फिरते हैं--आनंद लो आनंद।
कान्हा मोरि गागर फोरि गयौ रे
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोपी की गोरस से भरी मटकी फोड़ने की लीला और उसका भाव वर्णन
रसराज भगवान श्रीकृष्ण और महाभागा गोपियां
वन्दे नन्दव्रजस्त्रीणां पादरेणुमभीक्ष्णश:।
यासां हरिकथोद्गीतं पुनाति भुवनत्रयम्।। (श्रीमद्भागवत १०।४७।६३)
अर्थात्--हम उन गोकुल की व्रजांगनाओं की चरणरेणु को बार-बार श्रद्धासहित सिर पर चढ़ाते हैं, जिनकी भगवत्सम्बन्धिनी कथाएं...
श्रीकृष्णावतार के समय देवी-देवताओं का पृथ्वी पर विभिन्न रूपों में जन्म
इस प्रकार लीला-मंच तैयार हो गया, मंच-लीला की व्यवस्था करने वाले रचनाकार, निर्देशक एवं समेटने वाले भी तैयार हो गए। इस मंच पर पधारकर, विभिन्न रूपों में उपस्थित होकर अपनी-अपनी भूमिका निभाने वाले पात्र भी तैयार हो गए। काल, कर्म, गुण एवं स्वभाव आदि की रस्सी में पिरोकर भगवान श्रीकृष्ण ने इन सबकी नकेल अपने हाथ में रखी। यह नटवर नागर श्रीकृष्ण एक विचित्र खिलाड़ी हैं। कभी तो मात्र दर्शक बनकर देखते हैं, कभी स्वयं भी वह लीला में कूद पड़ते हैं और खेलने लगते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण की सरस बाललीलाएं
जो गोपी अनेक जन्मों से अपने हृदय के जिन भावों को श्रीकृष्ण को अर्पण करने की प्रतीक्षा कर रही है, उसकी उपेक्षा वह कैसे करें? इन्हीं गोपियों की अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए ही तो निर्गुण-निराकार परम-ब्रह्म ने सगुण-साकार लीलापुरुषोत्तमरूप धारण किया है। दिन भर के भूखे-प्यासे श्यामसुन्दर गोपी के साथ उसकी गौशाला में जाकर गोमय की टोकरियां उठवाने लगे। एक हाथ से अपनी खिसकती हुई काछनी को सम्हालते और दूसरे हाथ से गोमय की खाँच गोपी के सिर पर रखवाते। ऐसा करते हुए कन्हैया का कमल के समान कोमल मुख लाल हो गया। चार-पांच टोकरियां उठवाने के बाद कन्हैया बोले--गोपी, तेरा कोई भरोसा नहीं है। तू बाद में धोखा दे सकती है, इसलिए गिनती करती जा। और उस निष्ठुर गोपी ने कन्हैया के लाल-लाल मुख पर गोमय की हरी-पीली आड़ी रेखाएं बना दीं। अब तो गोपी अपनी सुध-बुध भूल गयी और कन्हैया के सारे मुख-मण्डल पर गोमय के प्रेम-भरे चित्र अंकित हो गये--’गोमय-मण्डित-भाल-कपोलम्।’
भगवान श्रीकृष्ण की माखनचोरी लीला
भगवान श्रीकृष्ण लीलावतार हैं। व्रज में उनकी लीलाएं चलती ही रहती हैं। श्रीकृष्ण स्वयं रसरूप हैं। वे अपनी रसमयी लीलाओं से सभी को अपनी ओर खींचते हैं। गोपियां प्राय: नंदभवन में ही टिकी रहतीं हैं। ‘कन्हैया कभी हमारे घर भी आयेगा। कभी हमारे यहां भी वह कुछ खायेगा। जैसे मैया से खीझता है, वैसे ही कभी हमसे झगड़ेगा-खीझेगा।’ ऐसी बड़ी-बड़ी लालसाएं उठती हैं गोपियों के मन में। श्रीकृष्ण भक्तवांछाकल्पतरू हैं। गोपियों का वात्सल्य-स्नेह ही उन्हें गोलोकधाम से यहां खींच लाया है। श्रीकृष्ण को अपने प्रति गोपियों द्वारा की गयी लालसा को सार्थक करना है और इसी का परिणाम माखनचोरी लीला है।
बालकृष्ण का कटि-परिवर्तन (करवट बदलने का) उत्सव
गोपियाँ बालकृष्ण के दर्शन में तन्मय हैं, तभी लाला ने करवट बदलना शुरु किया। इसे देखकर वे दौड़कर माता यशोदा के पास जाकर बोलीं कि बालकृष्ण ने आज करवट ली है । यशोदा माता को बहुत प्रसन्नता हुई कि लाला अभी तीन महीनों का है और करवट बदल रहा है। यशोदा माता ने कहा कि आज मैं लाला का कटि-परिवर्तन उत्सव करूंगी।
भगवान श्रीकृष्ण के व्रजसखा (गोपकुमार) एवं गोपियाँ
भक्ति की प्रवर्तिका गोपियां ही हैं। श्रीकृष्णदर्शन की लालसा ही गोपी है। गोपी कोई स्त्री नहीं है, गोपी कोई पुरुष नहीं है। श्रीमद्भागवत में ‘गोपी’ शब्द का अर्थ परमात्मा को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा बताया गया है।