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‘दोषों में गुण देखना’ यही है संत का स्वभाव
यह कह कर भट्टजी ने अपनी दोनों भुजाओं में महंतजी को भर कर हृदय से लगा लिया । भट्टजी की सरल और प्रेमपूर्ण वाणी सुन कर और उनके अंगस्पर्श से आज सचमुच महंतजी का हृदय पिघल गया और उनकी आंखों से अश्रुधारा बह निकली । दोष में गुण देखना—यही संत का सहज स्वभाव है ।