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भगवान के हरिहर स्वरूप का क्या है रहस्य ?
इतने में देवर्षि नारद वीणा बजाते, हरिगुण गाते वहां पधारे । तब पार्वतीजी ने नारदजी से इस समस्या का हल निकालने के लिए कहा । नारदजी ने हाथ जोड़कर कहा–‘मैं इसका क्या हल निकाल सकता हूँ । मुझे तो हरि और हर एक ही लगते हैं; जो वैकुण्ठ है वही कैलाश है ।’